रिपोर्ट

अशोक विहार में संपन्न हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
प्रशममूर्ति आचार्य श्री 108 शान्तिसागर जी महाराज (छाणी) परंपरा के प्रमुख संत परम पूज्य आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के प्रभावशाली प्रेरणा, कुशल निर्देशन व पावन सान्निध्य में राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी अशोक विहार फेज-2 स्थित श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर के जीर्णोद्धार व सौन्दर्यकरण के पश्चात् श्री 1008 श्रीमज्जिनेन्द्र आदिनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ का भव्य आयोजन दिनांक 27 नवम्बर 2021 से 02 दिसम्बर 2021 तक सानंद संपन्न हुआ| कार्यक्रम में क्षुल्लक श्री 105 योग भूषण जी महाराज ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से सभी को लाभान्वित किया| समस्त मांगलिक क्रियाएं डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत) व ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत' (टीकमगढ़) के निर्देशन में तथा पं. मनीष जैन 'संजू' (टीकमगढ़) व पं. अरविन्द जैन (रुड़की) के प्रतिष्ठाचार्यत्व में विधि-विधान पूर्वक संपन्न हुईं| पूज्य आचार्य श्री की प्रेरणा के अनुरूप मंदिर परिसर की विशुद्धि बढ़ाने के उद्देश्य से तथा कार्यक्रमों में होने वाले अपव्यय को बचाने के लिए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्बन्धी सभी क्रियाएं श्री मंदिर जी में ही आयोजित की गयी| अपने स्वर संगीत से सिद्धार्थ अम्बर एन्ड पार्टी (भोपाल) ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया|  

इससे पूर्व दिनांक 26 नवम्बर 2021 को प्रतिष्ठा महोत्सव के मुख्य पात्रों का स्वागत-सम्मान समारोह बबिता जैन झांझरी (रोहिणी) के मधुर संगीत लहरियों के साथ भव्य आयोजन किया गया| दिनांक 27 नवम्बर 2021 को घटयात्रा के बाद श्री नानक चंद जैन सपरिवार (अध्यक्ष) द्वारा ध्वजारोहण तत्पश्चात गर्भ कल्याणक (पूर्व रूप) तथा दिनांक 28 नवम्बर 2021 को गर्भ कल्याणक (उत्तर रूप) की क्रियाएं संपन्न हुईं| दिनांक 29 नवम्बर 2021 को जन्म कल्याणक के अवसर पर सौधर्म इंद्र द्वारा भव्य शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्गों पर निकाली गयी| तत्पश्चात पांडुकशिला पर जन्माभिषेक किया गया तथा शचि इन्द्राणी द्वारा बालक तीर्थंकर का श्रृंगार कर माता को सौंपा| रात्रि में बाल क्रीड़ा तथा पालना झुलाने का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया| दिनांक 30 नवम्बर 2021 को तप कल्याणक के अवसर पर पूज्य आचार्य श्री के कर-कमलों से राजकुमार आदिनाथ को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान कर महामुनि ऋषभनाथ जी नामकरण कर अंकन्यास व संस्कारोपण विधि संपन्न हुई|

दिनांक 01 दिसम्बर 2021 को महामुनि की आहारचर्या संपन्न हुईं तत्पश्चात सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर इंद्र द्वारा भव्य समवशरण की रचना की गयी| समवशरण में गणधर के रूप में विराजमान पूज्य आचार्य श्री ससंघ ने जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान किया| इस अवसर पर आचार्य श्री के पिच्छी परिवर्तन समारोह का आयोजन भी किया गया जिसमें श्री वीरेंद्र जैन अनीता जैन (अशोक विहार), श्री सुरेंद्र जैन रीता जैन (अशोक विहार) तथा श्रीमती रेखा जैन (पीतमपुरा) सपरिवार ने संयुक्त रूप से नवीन पिच्छी भेंट की तथा आचार्य श्री ने अपनी पुरानी पिच्छी श्री रमेश जैन मंजू जैन सपरिवार (अशोक विहार) को प्रदान कर धन्य किया| दिनांक 02 दिसम्बर 2021 को निर्वाण कल्याणक आयोजित किया गया तत्पश्चात वेदी में नवप्रतिष्ठित जिनबिम्ब विराजमान किये गए तथा उत्तुंग शिखर पर कलशारोहण व ध्वजारोहण किया गया|

पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में राजनेतागण, प्रशासनिक अधिकारीगण, सामाजिक कार्यकर्ता तथा राजधानी दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से भक्तजन व समाज श्रेष्ठिजन उपस्थित हुए| इस अविस्मरणीय आयोजन ने अशोक विहार जैन समाज के इतिहास में अनेकों स्वर्णिम पृष्ट जोड़ दिए| पंचकल्याणक प्रतिष्ठा के पश्चात् जिनालय में प्रथम बार श्री शान्तिनाथ महामण्डल विधान का भव्य आयोजन रविवार, दिनांक 5 दिसम्बर 2021 को पूज्य आचार्य श्री के पावन सान्निध्य में किया गया| पं. श्री ऋषभ जैन शास्त्री के निर्देशन में समस्त मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुईं जिसमें भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने सम्मिलित होकर धर्मलाभ प्राप्त किया|

 

आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता, पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज की असीम अनुकम्पा से गुरुभ्राता परम पूज्य सल्लेखनारत आचार्य श्री 108 मेरु भूषण जी महाराज द्वारा अपने परम प्रभावक अनुज-भ्राता परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज को सभी मांगलिक क्रियाएं संपन्न कर विधि-विधान पूर्वक ‘आचार्य पद’ पर दिनांक 20 दिसम्बर 2020 को एम. डी. जैन इण्टर कॉलेज ग्राउंड, हरी पर्वत, आगरा (उ.प्र.) में विशाल धर्मसभा के समक्ष प्रतिष्ठित किया गया| समारोह के प्रारम्भ में प्रातः काल की प्रत्युष बेला में एलाचार्य श्री का केशलोंच संपन्न हुआ| तत्पश्चात श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर में श्री गणधर वलय विधान आयोजित किया|

 

आगरा दिगम्बर जैन परिषद् तथा श्री दिगम्बर जैन शिक्षा समिति, आगरा के पदाधिकारी तथा समाज के विशिष्ट महानुभावों द्वारा आचार्य संघ को श्रीफल अर्पित कर भव्य पण्डाल में भक्तिभाव पूर्वक भव्य स्वागत किया गया| धर्म-सभा के शुभारम्भ में सर्वप्रथम श्री भोलानाथ जैन सिंघई परिवार द्वारा पंडाल उद्घाटन किया गया तथा श्री प्रदीप कुमार जैन 'पीएनसी' परिवार द्वारा विधिवत ध्वजारोहण संपन्न हुआ| श्री विमलेश जैन मार्सन्स परिवार द्वारा मंच उद्घाटन के पश्चात् आचार्य संघ मंचासीन हुआ| मंगलाचरण के साथ विशिष्ट महानुभावों द्वारा श्री जिनेन्द्र प्रभु, गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज तथा आचार्य श्री 108 मेरु भूषण जी महाराज के चित्र का अनावरण किया गया| सौभाग्यशाली परिवारों द्वारा जिनवाणी विराजमान, दीप प्रज्ज्वलन, पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट आदि मांगलिक क्रियाएं संपन्न हुईं| दिल्ली से पधारे गुरुभक्त श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री पंकज जैन 'नीटू' (कैलाश नगर), श्री सुनील जैन 'जयवीर' (ऋषभ विहार), श्री अंकुर जैन (सूर्य नगर), श्री राजेश जैन (कैलाश नगर), श्री मुकेश जैन (अशोक विहार), श्री विक्रांत जैन (अशोक विहार) तथा श्री समीर जैन (पीतमपुरा) द्वारा एलाचार्य श्री का सर्वोषधि द्वारा पाद प्रक्षालन किया गया|

 

भव्य समारोह में आचार्य श्री 108 मेरु भूषण जी महाराज, एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के साथ गणिनी आर्यिका श्री 105 सृष्टि भूषण माता जी, क्षुल्लक श्री 105 योग भूषण जी महाराज, क्षुल्लिका श्री 105 तृप्ति भूषण माता जी, क्षुल्लिका श्री 105 पूजा भूषण माता जी तथा क्षुल्लिका श्री 105 भक्ति भूषण माता जी का परम सान्निध्य भी प्राप्त हुआ| अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् से विद्वतजन डॉ. श्रेयांस जैन (बड़ौत), ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत' (टीकमगढ़), डॉ. नलिन के. शास्त्री (लाडनूं), डॉ. विनोद जैन (रजवांस), डॉ. अमित जैन 'आकाश' (वाराणसी), पं. अशोक जैन शास्त्री 'धीरज' (दिल्ली), पं. जिनेन्द्र जैन शास्त्री (मथुरा) आदि स्थानीय विद्वानों ने उपस्थित होकर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई तथा आचार्य पद की सहर्ष अनुमोदना कर अपनी स्वीकृति प्रदान की| 

 

आचार्य श्री मेरु भूषण जी महाराज ने अपनी मंगलमयी आशीषवर्षा से उपस्थित भक्तों को सरो-बार करवाया| आचार्य श्री ने कहा कि जीवन का लक्ष्य शरीर और आत्मा के भेद विज्ञान को प्राप्त करना है| इसी से आत्मा परमात्मा बनेगी| आचार्य श्री ने आगे कहा कि गुरुवर आचार्य श्री ने अपने प्रिय शिष्य तथा हमारे अनुज-भ्राता अतिवीर जी महाराज की योग्यता को देखते हुए एलाचार्य पद पर सुशोभित किया| एलाचार्य ही आगे चलकर भावी आचार्य होता है| इसलिए गुरुवर के संकेत को देखते हुए उनकी समाधी के पश्चात् आज हम उनका यह अधूरा कार्य पूर्ण कर रहे हैं| एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज ने कहा कि हमारे जीवन में गुरुओं का बहुत उपकार है तथा आज हमारे अग्रज-भ्राता पूज्य आचार्य श्री की कृपा-वर्षा हम पर हो रही है| हमारे द्वारा आचार्य पद की गरिमा व प्रतिष्ठा को कभी चोट न पहुंचे, ऐसा हम जीवन भर प्रयासरत रहेंगे|

 

डॉ. श्रेयांस जैन (बड़ौत), डॉ. नलिन के. शास्त्री (लाडनूं), श्री स्वदेश भूषण जैन (पंजाब केसरी) ने अपने उद्बोधन में इन पलों को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि आज जैन धर्म की प्रभावना में नवीन कीर्तिमान स्थापित होने जा रहा है| आगरा जैन समाज ने आचार्य श्री व एलाचार्य श्री के चरणों में शीतकालीन प्रवास हेतु निवेदन किया| प्राचीन श्री अग्रवाल दिगम्बर जैन पंचायत, धर्मपुरा (दिल्ली) के पदाधिकारियों ने एलाचार्य श्री से शीघ्र दिल्ली आगमन हेतु निवेदन करते हुए कहा कि आचार्य पदारोहण के पश्चात् दिल्ली जैन समाज द्वारा लाल मंदिर में ऐतिहासिक अभिनन्दन समारोह का आयोजन करने का भाव है| शकरपुर जैन समाज ने एलाचार्य श्री के चरणों में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा हेतु निवेदन किया तथा रानी बाग जैन समाज ने आगामी अष्टाह्निका पर्व के अवसर पर श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान हेतु निवेदन किया| एलाचार्य श्री ने सभी के निवेदन सहर्ष स्वीकार किये|

 

इसके पश्चात् पूज्य आचार्य श्री ने विराजमान समस्त साधु संघ, विद्वत-वर्ग तथा उपस्थित सभी श्रद्धालुओं की अनुमति से एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज के ‘आचार्य पद’ संस्कार का शुभारम्भ किया| संस्कार के लिए निर्मित ठोस चबूतरे पर पूज्य आचार्य श्री एवं एलाचार्य श्री विराजमान हुए| ब्र. पुष्पेंद्र जैन शास्त्री (दिल्ली) तथा पं. धरणेन्द्र जैन शास्त्री (ललितपुर) के प्रतिष्ठाचार्यत्व में तथा विशाल जन-समुदाय के समक्ष ‘आचार्य पद’ के संस्कार प्रारम्भ हुए| संस्कारों के पश्चात् नव प्रतिष्ठित आचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज को श्री पुनीत जैन सपरिवार (गन्नौर) द्वारा नवीन मयूर पिच्छिका प्रदान की गयी तथा सौभाग्यशाली महानुभावों द्वारा कमण्डलु प्रदान व शास्त्र भेंट किए गयें| पूज्य आचार्य श्री द्वारा पुरानी पिच्छी श्री मनोज जैन (निर्माण विहार) को प्रदान की गई| मंच पर विराजमान समस्त साधु-वृन्द की मंगल आरती विशेष रूप से सजाये गए दीपकों द्वारा की गई| इस अवसर पर गणिनी आर्यिका श्री सृष्टि भूषण माता जी की पिच्छी परिवर्तन भी की गयी| 

 

आचार्य पद प्रतिष्ठापन समारोह अत्यंत आनन्द पूर्वक भव्यता से संपन्न हुआ| इस समारोह में आगरा व निकटवर्ती नगरों के साथ-साथ राजधानी दिल्ली से गुरु-भक्त तथा मथुरा, कोसी, पलवल, होडल, बल्लभगढ़, फरीदाबाद, भरतपुर, मुरैना, मुंबई, बडौत, गाजियाबाद, नॉएडा, गुडगाँव, इन्दौर आदि विभ्भिन स्थानों से भारी संख्या में धर्मानुरागी बंधुओं ने सम्मिलित होकर विशेष पुण्यार्जन किया| भव्य कार्यक्रम के पश्चात् समस्त आगंतुक बंधुओं के लिए स्वरूची भोज की व्यवस्था की गई थी जिसका सभी ने खूब आनन्द लिया| यह कार्यक्रम जैन इतिहास में एक अनूठा कार्यक्रम था तथा एक ऐतिहासिक रूप लेकर सानन्द संपन्न हुआ|
 
आगरा में होगा आचार्य पद प्रतिष्ठापन

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता, पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के परम प्रभावक प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में राजधानी दिल्ली व निकटवर्ती प्रदेशों में पिछले 14 वर्षों के दीक्षा काल में व्यापक धर्मप्रभावना संपन्न हुई है| पूज्य एलाचार्य श्री की छलछलाती मंद-मंद मुस्कान हर बाल-वृद्ध को अपनी ओर सहज ही आकर्षित कर लेती है| लगभग 25 वर्षों की सतत संयम साधना से फलीभूत एलाचार्य श्री के अथाह ज्ञान भंडार, तप-त्याग-साधना, समाज-उद्धारक मानसिकता, स्व-पर कल्याण की भावना, एकता व संगठन, साधर्मी वात्सल्य, गंभीर चिंतन, धैर्य आदि अनेकों योग्य गुणों को देखते हुए यह कहना अतिश्योक्ति ना होगी कि पूज्य एलाचार्य श्री जैन धर्म के वाङ्ग्मय में एक प्रखर प्रकाश पुंज की भांति दैदीप्यमान नक्षत्र बनकर जगमगाएंगे|

अपनी सम्यक दृष्टि से इन गुणों को देखकर तथा गहन विचार-मंथन के पश्चात् गुरुभ्राता परम पूज्य सल्लेखनारत आचार्य श्री 108 मेरु भूषण जी महाराज ने एलाचार्य श्री को श्रमण परंपरा के वर्तमान में सर्वोच्च पद "आचार्य पद" पर प्रतिष्ठित करने का निर्णय ले लिया है| पिछले कुछ माह से आचार्य श्री द्वारा चातुर्मास पश्चात् मंगल मिलन हेतु लगातार सन्देश मिल रहा था और अब समय नज़दीक आने पर आचार्य श्री की ओर से पं. श्री धरणेन्द्र शास्त्री के साथ एक प्रतिनिधिमंडल ने मथुरा पधारकर एलाचार्य श्री को आचार्य श्री की इस भावना से अवगत करवाया तथा शीघ्र ही आगरा की ओर मंगल विहार करने हेतु निवेदन किया| अग्रज गुरुभ्राता के मनोभाव को ध्यान में रखते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने यह आदेश शिरोधार्य कर अपनी स्वीकृति प्रदान की|

उल्लेखनीय है कि आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज द्वारा दीक्षित तथा उन्हीं के कर-कमलों द्वारा एलाचार्य पद पर सुप्रतिष्ठित पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज से कई बार अलग-अलग आचार्य संघों ने, विद्वत-वर्ग व गणमान्य महानुभावों ने तथा विभिन्न समाजों द्वारा पदोन्नति हेतु निवेदन किया जा चुका है| परन्तु पदों की होड़ से स्वयं को दूर रखते हुए एलाचार्य श्री ने सभी निवेदनों को अस्वीकार करते हुए कहा कि गुरुवर आचार्य श्री के कर-कमलों से मिला हुआ पद छोड़कर अन्यत्र किसी संघ में शामिल होने का कोई विचार उनका नहीं है तथा साधु को कोई भी पद देने का अधिकार समाज को नहीं है| अत्यंत हर्ष का विषय है कि आचार्य पद प्रतिष्ठापन समारोह का आयोजन दिनांक 20 दिसंबर 2020 को एम. डी. जैन इण्टर कॉलेज, हरी पर्वत, आगरा में होने जा रहा है जिसमें गणिनी आर्यिका श्री 105 सृष्टि भूषण माताजी ससंघ के पावन सान्निध्य तथा क्षुल्लक श्री 105 योग भूषण जी महाराज के कुशल निर्देशन में समस्त मांगलिक क्रियाएं संपन्न होंगी| सरकारी आदेशों का पालन करते हुए आयोजित होने जा रहे इस समारोह में दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, उ.प्र. आदि विभिन्न प्रदेशों से अनेक गुरुभक्तों के सम्मिलित होने की सूचनाएं प्राप्त हो रही|
 
मथुरा चौरासी में संपन्न हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
53 फुट उत्तुंग चौबीसी मानस्तम्भ बना आकर्षण का केंद्र

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के परम प्रभावक प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में उत्तर भारत के एकमात्र सिद्धक्षेत्र मथुरा चौरासी (उ.प्र.) में श्री 1008 श्रीमज्जिनेन्द्र अजितनाथ जिनबिम्ब मानस्तम्भ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ का भव्य आयोजन ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत' एवं पं. मनीष जैन 'संजू' व पं. जिनेन्द्र शास्त्री के प्रतिष्ठाचार्यत्व में दिनांक 7 से 12 मार्च 2020 तक सानंद संपन्न हुआ| कार्यक्रम में परम श्रद्धेय क्षुल्लक श्री 105 योग भूषण जी महाराज का मंगलमय सान्निध्य भी प्राप्त हुआ| चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री 108 शान्ति सागर जी महाराज की शताब्दी दीक्षा वर्ष के पावन प्रसंग पर पूज्य आचार्य श्री की प्रतिमा स्थापना भी की गयी|

कार्यक्रम का शुभारम्भ दिनांक 7 मार्च को देवाज्ञा, गुरु आज्ञा, घटयात्रा, ध्वजारोहण, वेदी शुद्धि आदि मांगलिक क्रियाओं के साथ हुआ| तत्पश्चात पंचकल्याणक पात्रों का सम्मान व शोभायात्रा निकाली गयी| दोपहर में श्री यागमण्डल विधान का आयोजन हुआ तथा रात्रि में गर्भ कल्याणक (पूर्व रूप) की क्रियाएं संपन्न हुईं| दिनांक 8 मार्च को गर्भ कल्याणक (उत्तर रूप) आयोजित हुआ| दिनांक 9 मार्च को जन्म कल्याणक के अवसर पर सौधर्म इंद्र द्वारा भव्य शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्गों पर निकाली गयी| तत्पश्चात पांडुकशिला पर जन्माभिषेक किया गया तथा शचि इन्द्राणी द्वारा बालक तीर्थंकर का श्रृंगार कर माता को सौंपा| रात्रि में बाल क्रीड़ा तथा पालना झुलाने का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया| 

दिनांक 10 मार्च को तप कल्याणक के अवसर पर पूज्य एलाचार्य श्री के कर-कमलों से राजकुमार अजितनाथ को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान कर महामुनि अजितनाथ जी नामकरण किया गया| दिनांक 11 मार्च को महामुनि की आहारचर्या संपन्न हुईं तत्पश्चात सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर इंद्र द्वारा भव्य समवशरण की रचना की गयी| समवशरण में गणधर के रूप में विराजमान पूज्य एलाचार्य श्री ने जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान किया| दिनांक 12 मार्च को निर्वाण कल्याणक आयोजित किया गया तत्पश्चात वेदी में नवप्रतिष्ठित जिनबिम्ब विराजमान किये गए तथा 53 फुट उत्तुंग चौबीसी मानस्तम्भ पर कलशारोहण व ध्वजारोहण किया गया|

अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद् के यशस्वी अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत) के नेतृत्व में जैन दर्शन के अनेक मूर्धन्य विद्वानों ने इस प्रतिष्ठा महोत्सव में सम्मिलित होकर अपना दिशा-निर्देशन प्रदान किया तथा प्रतिष्ठा सम्बन्धी अनेक विषयों पर पूज्य एलाचार्य श्री से गहन चर्चा संपन्न की| प्रतिष्ठा महोत्सव में श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, वृन्दावन (मथुरा) सहित अनेक जिनमंदिरों में स्थापित होने वाले जिनबिंबों की प्रतिष्ठा भी की गयी|

श्री जम्बूस्वामी सिद्धक्षेत्र मथुरा चौरासी में आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में मथुरा, आगरा, फरीदाबाद, बल्लभगढ़, पलवल, होडल, कोसी कलां, भरतपुर, अलीगढ, फ़िरोज़ाबाद, खेकड़ा, बड़ौत, गाज़ियाबाद, दिल्ली आदि विभिन्न क्षेत्रों से सैकड़ों भक्तजन तथा समाज श्रेष्ठिजन उपस्थित हुए| इस अविस्मरणीय आयोजन ने मथुरा जैन समाज के इतिहास में अनेकों स्वर्णिम पृष्ट जोड़ दिए|
 रानी बाग में संपन्न हुआ पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव
दिल्ली में प्रथम बार शुद्ध चांदी का चंदोया चढ़ाया गया
108 फुट उत्तुंग शिखर बना आकर्षण का केंद्र

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के परम प्रभावक प्रियाग्र शिष्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के प्रभावशाली प्रेरणा, कुशल निर्देशन व पावन सान्निधय में राजधानी दिल्ली के उत्तरी संभाग के रोहिणी-पीतमपुरा क्षेत्र के प्रथम जिनालय श्री 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर जी, रानी बाग के जीर्णोद्धार के पश्चात् प्रथम बार श्री 1008 श्रीमज्जिनेन्द्र आदिनाथ जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ का भव्य आयोजन ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत' एवं पं. मनीष जैन 'संजू' के प्रतिष्ठाचार्यत्व में दिनांक 14 जनवरी 2019 से 19 जनवरी 2019 तक सानंद संपन्न हुआ| एलाचार्य श्री की प्रेरणा के अनुरूप मंदिर परिसर की विशुद्धि बढ़ाने के उद्देश्य से तथा कार्यक्रमों में होने वाले अपव्यय को बचाने के लिए पंचकल्याणक प्रतिष्ठा सम्बन्धी सभी क्रियाएं श्री मंदिर जी में ही आयोजित की गयी| अपने स्वर संगीत से पारस अम्बर एन्ड पार्टी (दिल्ली) ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया|  

इससे पूर्व दिनांक 13 जनवरी 2019 को अस्थायी मंदिर से जिनबिम्ब उत्थापन क्रिया संपन्न हुई| सवालाख जाप्यानुष्ठान, श्री 1008 शांतिनाथ महामण्डल विधान व विश्वशांति महायज्ञ के पश्चात् मूलनायक श्री 1008 शांतिनाथ भगवान, श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान तथा श्री 1008 महावीर भगवान की प्रतिमा को विशाल शोभायात्रा के साथ नवनिर्मित मंदिर लाया गया| सौभाग्यशाली पात्रों ने नवीन वेदी की शुद्धि के पश्चात् समस्त प्रतिमाओं को यथास्थान विराजमान किया तथा सिंहासन, छत्र, भामण्डल, चंवर आदि मांगलिक वस्तुएं विराजमान किया| तत्पश्चात पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के प्रमुख पात्रों का सम्मान किया गया| पूज्य एलाचार्य श्री का मंगल प्रवेश दिनांक 12 जनवरी 2019 को हुआ|  दिनांक 14 जनवरी 2019 को घटयात्रा के बाद श्री प्रमोद जैन (वर्धमान ग्रुप) द्वारा ध्वजारोहण तत्पश्चात गर्भ कल्याणक (पूर्व रूप) तथा दिनांक 15 जनवरी 2019 को गर्भ कल्याणक (उत्तर रूप) की क्रियाएं संपन्न हुईं| दिनांक 16 जनवरी 2019 को जन्म कल्याणक के अवसर पर सौधर्म इंद्र द्वारा भव्य शोभायात्रा नगर के मुख्य मार्गों पर निकाली गयी| तत्पश्चात पांडुकशिला पर जन्माभिषेक किया गया तथा शचि इन्द्राणी द्वारा बालक तीर्थंकर का श्रृंगार कर माता को सौंपा| रात्रि में बाल क्रीड़ा तथा पालना झुलाने का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया| 

दिनांक 17 जनवरी 2019 को तप कल्याणक के अवसर पर पूज्य एलाचार्य श्री के कर-कमलों से राजकुमार आदिनाथ को जैनेश्वरी दीक्षा प्रदान कर महामुनि आदिसागर जी नामकरण किया गया| दिनांक 18 जनवरी 2019 को महामुनि की आहारचर्या संपन्न हुईं तत्पश्चात सौधर्म इंद्र की आज्ञा से कुबेर इंद्र द्वारा भव्य समवशरण की रचना की गयी| समवशरण में गणधर के रूप में विराजमान पूज्य एलाचार्य श्री ने जिज्ञासुओं की शंकाओं का समाधान किया| दिनांक 19 जनवरी 2019 को निर्वाण कल्याणक आयोजित किया गया तत्पश्चात वेदी में नवप्रतिष्ठित जिनबिम्ब विराजमान किये गए तथा 108 फुट उत्तुंग शिखर पर कलशारोहण व ध्वजारोहण किया गया| दिनांक 20 जनवरी 2019 को पंचकल्याणक के पश्चात् मूलनायक श्री 1008 शांतिनाथ भगवान का महामस्तकाभिषेक आयोजित किया गया जिसमें धर्म जागृति युवा मंडल (DJYM) के सदस्यों ने सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया| राजधानी दिल्ली के इतिहास में प्रथम बार श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, रानी बाग में पूज्य एलाचार्य श्री के मंगल आशीर्वाद से शुद्ध चांदी से निर्मित अत्यंत मनोहारी व आकर्षक चंदोया चढ़ाया गया| प्रतिष्ठा महोत्सव में श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, मजलिस पार्क (आदर्श नगर) से प्रतिमा जी की प्रतिष्ठा भी की गयी तथा श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, सुन्दर विहार (पश्चिम विहार) से आकर्षक पंचमेरू का शुद्धिकरण भी किया गया|

रानी बाग के इतिहास में प्रथम बार आयोजित पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव में राजधानी दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से भक्तजन तथा समाज श्रेष्ठिजन उपस्थित हुए| इस अविस्मरणीय आयोजन ने रानी बाग जैन समाज के इतिहास में अनेकों स्वर्णिम पृष्ट जोड़ दिए| उल्लेखनीय है कि पूज्य एलाचार्य श्री की पावन प्रेरणा व आशीर्वाद से मात्र डेढ साल की अल्पावधि में ही भव्य जिनालय का निर्माण पूर्ण हुआ|

 स्वर्णिम पलों का साक्षी बना दिल्ली का प्राचीन लाल मन्दिर
प्रथम बार आयोजित हुआ श्री समयसार विधान

फाल्गुनी अष्टाह्निका महापर्व के पावन पुनीत प्रसंग पर राजधानी दिल्ली के दिल चांदनी चौक स्थित श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर में परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन सान्निध्य में प्रथम बार श्री 1008 समयसार महामण्डल विधान एवं विश्वशांति महायज्ञ का विराट आयोजन दिनांक 22 फरवरी से 2 मार्च 2018 तक भव्य रूप से सानंद संपन्न हुआ| समस्त मन्दिर परिसर व क्षेत्र की आकर्षक सज्जा व लाइटिंग का मनमोहक नजारा देखते ही बनता था| लाल मन्दिर जी के इतिहास में संभवतः यह प्रथम अवसर था जब इस प्रकार की भव्य साज-सज्जा परिसर में की गयी| गृहस्थ जीवन से ही लाल मन्दिर में एक ऐतिहासिक व विराट विधान आयोजित करवाने का सपना अपनी आँखों में संजोये एलाचार्य श्री ने इस सपने को साकार किया जिससे जैन समाज की नाक माने जाने वाले लाल मन्दिर की प्रतिष्ठा में चार-चाँद लग गए| जैन-अजैन सभी समुदाय के महानुभाव लाल मन्दिर की छटा को बस निहारते ही रह गए| युवाओं में सेल्फी लेने की उत्सुकता बनी रही| इन्द्र-इंद्राणियों की आकर्षक वेशभूषा ऐसा मनोरम दृश्य प्रस्तुत कर रही थी जैसे जिनेंद्र प्रभु की वंदना करने स्वर्गों से देवगण आये हों|
विधान की मंगलमय शुरुवात दिनांक 22 फरवरी 2018 को मंगल निनाद के साथ हुई जब सैकड़ों की संख्या में इंद्रों ने जिनेन्द्र प्रभु के अभिषेक आदि मांगलिक क्रियाओं का शुभारम्भ किया| श्री नेमचंद राकेश कुमार प्रवीण कुमार जैन, अशोक विहार (दिल्ली) द्वारा ध्वजारोहण किया गया| ध्वज का ईशान दिशा की ओर जाना अपने आप में मंगल का सूचक था| तत्पश्चात चित्र अनावरण, दीप प्रजज्वलन, शास्त्र विराजमान, शास्त्र भेंट, पाद प्रक्षालन, मंडल पर जिनवाणी विराजमान, अखंड ज्योत विराजमान, दिग्बन्धन, ठोना स्थापना आदि क्रियाएं पूर्ण हुईं| 14x14 फ़ीट के चहुंमुंखी दिव्य समवशरण की मनोहारी रचना सभी का दिल अपनी ओर आकर्षित कर रही थी| घने जंगल में गुफा में आचार्य श्री कुंद-कुंद स्वामी द्वारा श्री समयसार ग्रंथराज का लेखन करते हुए मनमोहक झांकी भी दर्शायी गयी| समवशरण के तीन दिशाओं में लगभग 700-800 इंद्र-इंद्राणियों से खचाखच भरे विशाल हॉल में भक्ति का ऐसा सरोवर था जिसमें गोते लगाने के लिए हर कोई आतुर था| विधान में गणिनी आर्यिका श्री 105 चन्द्रमति माताजी एवं आर्यिका श्री 105 शक्ति भूषण माताजी का मंगलमय सान्निध्य भी प्राप्त हुआ| डॉ. श्रेयांस जैन (बड़ौत), ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत' (टीकमगढ़), ब्र. विनोद भैया (पपौरा), डॉ. अमित जैन 'आकाश' (वाराणसी), ब्र. आभा दीदी (दिल्ली), श्री संदीप जैन (दिल्ली) ने अपनी ओजस्वी वाणी से अत्यंत सरल शब्दों में प्रतिदिन श्री समयसार ग्रंथराज के गूढ़ रहस्यों को उपस्थित जनसमुदाय को समझाया| समस्त मांगलिक क्रियाएं ब्र. राज किंग जैन (अशोक नगर) के विधानाचार्यत्व व संगीत लहरियों के साथ विधि-विधान पूर्वक संपन्न हुईं|
प्रथम बार आयोजित हुए श्री समयसार महामण्डल विधान में श्री प्रवीण जैन (अशोक विहार) को सौधर्म इंद्र, श्री पदम प्रसाद जैन (दरीबा) को यज्ञनायक, श्री मदनलाल संजय जैन (राधापुरी), श्री महेंद्र कुमार जैन (बैंक एन्क्लेव) व श्री जिनेन्द्र कुमार जैन (कूंचा सेठ) को कुबेर इंद्र तथा श्री नितिन जैन (विवेक विहार), श्री मनीष जैन (शांति विहार), श्री अनुज-दीपक जैन (गुलियान), श्री प्रमोद जैन (अशोक विहार), श्री पंकज जैन नीटू (कैलाश नगर), श्री बिजेंद्र-राजेश जैन (कैलाश नगर), श्री बॉबी जैन (गाँधी नगर), श्री सुनील जैन (ऋषभ विहार), श्री अरविन्द जैन (केशव पुरम) को मुख्य पात्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ| दिनांक 25 फरवरी 2018 का दिन कुछ विशेष था क्योंकि इस दिन श्री समयसार ग्रंथराज के रचियता आचार्य श्री कुन्द-कुन्द स्वामी जी की अष्ट-द्रव्य से विशेष पूजन संपन्न हुई| सौभाग्यशाली महानुभावों ने संगीतमयी लहरियों के साथ आचार्यश्री के चरणों में सुसज्जित थालों में अष्ट-द्रव्य समर्पित किया| सभा के मध्यस्थ ही पूज्य एलाचार्य श्री व आर्यिकाश्री का पिच्छी परिवर्तन समारोह भी संपन्न हुआ| एलाचार्य श्री के कर-कमलों में सकल जैन समाज, शकरपुर ने नवीन मयूर पिच्छी प्रदान की तथा एलाचार्य श्री की पुरानी पिच्छी श्री अरविन्द जैन सपरिवार (केशव पुरम) ने प्राप्त की| प्रतिदिन सायं काल में प्रेरक व मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम आराधना महिला मंडल व स्याद्वाद महिला मंडल के अथक प्रयासों से प्रस्तुत किये गए| भारी संख्या में उपस्थित विशाल जनसमुदाय में सौभाग्यशाली महानुभावों को लक्की ड्रा के माध्यम से आकर्षक उपहार प्रदान किये गए|
दिनांक 1 मार्च 2018 को प्रातः काल में विधान-पूजन के मध्यस्थ श्री विवेक जैन (धर्मपुरा) द्वारा आचार्य श्री कुन्द-कुन्द स्वामी जी के जीवन पर आधारित लघु नाटिका का मंचन किया गया जिसने उपस्थित श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया| विधान का समापन दिनांक 2 मार्च 2018 को विश्वशांति महायज्ञ के साथ हुआ| इस अवसर पर आज़ादी के समय मुलतान (पाकिस्तान) से लायी गयीं 24 तीर्थंकरों की अतिशयकारी प्रतिमाओं का अभिषेक व बड़ी शांतिधारा का आयोजन अत्यंत शालीन व अनुशासनबद्ध रूप से किया गया| ऐसा भव्य आयोजन, ऐसा अविस्मरणीय महोत्सव, ऐसा रमणीय माहौल, ऐसी सजावट, ऐसी लाइटिंग, ऐसी सुचारु व्यवस्था शायद ही पहले कभी देखी गयी होगी| इस महाआयोजन ने 'न भूतो न भविष्यति' को सार्थक कर दिया है| इस विधान में चांदनी चौक के श्रद्धालुओं के साथ दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से भक्तगण तथा गुडगाँव, फरीदाबाद, रेवाड़ी, जयपुर, मुजफ्फरनगर, बड़ौत, अहमदाबाद, अम्बाला, बैतूल आदि जगह-जगह से इंद्र-इन्द्राणियां सम्मिलित हुए| सुबह से शाम तक समस्त कार्यक्रमों में भारी भीड़ को देखते हुए परिसर में जगह-जगह प्लाज़्मा टीवी तथा बड़े एलईडी स्क्रीन लगाए गए| पारस चैनल के माध्यम से लगभग 2 महीने तक इस महामहोत्सव का प्रचार-प्रसार युद्धस्तर पर किया गया| बाहर से पधारे सभी श्रद्धालुओं के लिए जैन भवन में सर्व-सुविधायुक्त आवास की उत्तमोत्तम व्यवस्था बनायीं गयी| प्रातः काल नाश्ता से लेकर दोपहर व सायं काल के भोजन तत्पश्चात रात्रि में केसर-बादाम युक्त दूध आदि की समुचित व्यवस्था आने-जाने वाले सभी श्रद्धालुओं को मिली|
प्राचीन श्री अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत व जैन समाज दिल्ली के अध्यक्ष श्री चक्रेश जैन ने बताया कि लाल मन्दिर वह स्थान है जहाँ देश में पहली बार श्री 1008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान के हिंदी रूपांतरण का आयोजन सन 1940 के लगभग किया गया| 25-30 वर्ष पहले तक यहाँ बहुत से विधान होते रहे परन्तु वर्तमान में एलाचार्य श्री के सान्निध्य में आयोजित इस अद्भुत विधान को देखकर हम आश्चर्यचकित हैं| यह पहला अवसर है जब लाल मन्दिर के तीनों हॉल खचाखच भरे हुए हैं| वर्तमान में जब कोई इन संकरी गलियों में रहना पसंद नहीं करता और स्थानीय जनसँख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है, ऐसे में इस विधान के माहौल से पुरानी यादें ताजा हो उठती हैं| लाल मन्दिर के प्रबंधक श्री पुनीत जैन ने भी मुक्त-कंठ से इस आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि लाल मन्दिर में ऐसा विराट आयोजन कभी पहले हुआ हो, ऐसा हमें याद नहीं| श्री दिगम्बर जैन मन्दिर कार्यकारिणी समिति, न्यू रोहतक रोड (करोल बाग) के महामंत्री श्री ऋषभ जैन ने कहा कि ऐसे ऐतिहासिक आयोजन में सहभागी बनकर समस्त करोल बाग जैन समाज गौरवान्वित है तथा पूज्य एलाचार्य श्री के सान्निध्य में आयोजित हो रहे ऐसे अनूठे विधान में सम्मिलित होकर सभी प्रफुल्लित हैं| विधान में गजब की वेशभूषा, अकल्पनीय अनुशासन, मनमोहक सजावट को देखकर हर कोई हतप्रभ है|
इस आयोजन की विशेषता रही कि इसमें सम्मिलित होने के लिए इंद्र-इंद्राणियों के लिए बैठने, वेशभूषा, रहने, भोजन आदि की सभी व्यवस्था पूर्णतः निःशुल्क थी| सम्पूर्ण अनुष्ठान विधि में इन्द्र-इंद्राणियों द्वारा श्रीजी के चरणों में लगभग 20 हज़ार गोले समर्पित किये गए| इस महाआयोजन में प्राचीन श्री अग्रवाल दिगंबर जैन पंचायत (धर्मपुरा) तथा श्री दिगम्बर जैन मन्दिर कार्यकारिणी समिति, न्यू रोहतक रोड (करोल बाग) के साथ कंधे-से-कन्धा मिलाकर श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री सुनील जैन (शक्ति नगर), श्री पंकज जैन नीटू (कैलाश नगर), श्री सुनील जैन (ऋषभ विहार), श्री समीर जैन (पीतमपुरा), श्री शरद जैन (जागृति एन्कलेव), श्री अनिल जैन बल्लो (प्रीत विहार), श्री सुशील जैन (पटपड़गंज), श्री अंकुर जैन (सूर्य नगर), श्री विकास जैन (धर्मपुरा), श्री आदीश जैन (वकीलपुरा), जैन यूथ काउंसिल (दिल्ली प्रदेश) आदि कर्मठ कार्यकर्ताओं ने समारोह को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग किया|

अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव में रच गया इतिहास

एलाचार्य अतिवीर जी के सान्निध्य में हुआ भव्य कार्यक्रम



उत्तर प्रदेश की धर्मपरायण नगरी बागपत जिले के अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव में नव-वर्ष के मंगल आगमन पर ऐतिहासिक कार्यक्रम नवप्रभात महोत्सव का विराट आयोजन दिनांक 1 जनवरी 2018 को भव्य रूप से किया गया| त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के प्रियाग्र शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के निर्देशन, आशीर्वाद व सान्निध्य में इस अनूठे कार्यक्रम का संयोजन सफलता पूर्वक सानंद संपन्न हुआ| पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में विलुप्त होती जा रही महान भारतीय संस्कृति के संरक्षण तथा युवा वर्ग में संस्कारोपण के उद्देश्य से ऐसे अनूठे कार्यक्रम की रूपरेखा बनायी गयी जहाँ मनोमंजन के साथ-साथ मनोरंजन का भी भरपूर प्रबंध किया गया था। 



भारी कोहरे के बावजूद भी सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता क्षेत्र पर लगने लगा| नवप्रभात महोत्सव में सम्मिलित होने के लिए दिल्ली सहित बड़ौत, सहारनपुर, मेरठ, अलवर, तिजारा, रेवाड़ी, गुरुग्राम, फर्रुखनगर, फरीदाबाद, लोनी, कोसी कलां, भिंड, ग्वालियर, आगरा, मथुरा आदि अनेक क्षेत्रों से सैकड़ों बसों व हजारों निजी वाहनों से लगभग 25 हजार श्रद्धालुजन पहुंचे| नव-वर्ष की प्रथम बेला पर सर्वप्रथम प्राचीन बड़ा मंदिर में मूलनायक श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान का अभिषेक व शांतिधारा संपन्न हुई| तत्पश्चात श्री मदनलाल अंकुर जैन सपरिवार, सूर्य नगर (गाज़ियाबाद) द्वारा बड़े बाबा श्री 1008 पार्श्वनाथ मंडल विधान का आयोजन हुआ जिसमें भारी संख्या में धर्मानुरागी बंधुओं ने सम्मिलित होकर पुण्यार्जन किया| समस्त मांगलिक क्रियाएं ब्र. राज किंग जैन, अशोक नगर (म.प्र.) के विधानाचार्यत्व में संपन्न हुईं| 



गुरुवर आचार्य श्री की प्रेरणा से निर्मित विश्व की अनुपम कृति त्रिलोक तीर्थ धाम के प्रांगण में दोपहर में विभिन्न मनमोहक व प्रेरक सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए जिन्हें देखकर उपस्थित जनसमुदाय भाव-विभोर हो उठा| मंचासीन एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज, एलाचार्य श्री 108 त्रिलोक भूषण जी महाराज, गणिनी आर्यिका श्री 105 चन्द्रमति माताजी, गणिनी आर्यिका श्री 105 भाग्यमति माताजी, आर्यिका श्री 105 मुक्ति भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 दृष्टि भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 अनुभूति भूषण माताजी, आर्यिका श्री 105 शक्ति भूषण माताजी, क्षुल्लिका श्री 105  वीरमति माताजी आदि त्यागी-वृन्दों ने सभी को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया| स्वागताध्यक्ष श्री रोशनलाल मुनीश कुमार जैन, नवीन शाहदरा (दिल्ली) द्वारा श्री गजराज गंगवाल - अध्यक्ष (त्रिलोक तीर्थ), श्री राजेंद्र जैन - अधिष्ठाता (त्रिलोक तीर्थ), श्री श्याम लाल जैन, श्री रमेश जैन (जग्गी डेरी), श्री प्रवीण जैन, श्री सुभाष चंद जैन - महामंत्री (प्राचीन मन्दिर), श्री त्रिलोक चंद जैन, श्री नरेश चंद जैन - अध्यक्ष (जैन कॉलेज खेकड़ा), श्री अनिल जैन, श्री रिषभ जैन आदि विशिष्ट महानुभावों का तिलक लगाकर व अंगवस्त्र भेंट कर सम्मान किया गया| 



एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने उपस्थित जनसमुदाय को सम्बोधित करते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रम के आयोजन का प्रमुख उद्देश्य युवाओं को पाश्चात्य संस्कृति से बचाना है| एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि नव-वर्ष के रूप में वर्तमान में युवा-वर्ग पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित होकर होटल में जाते हैं और वहां अनैतिक क्रियाओं में लिप्त होते हैं| ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति से बचने के लिए इस प्रकार के आयोजन संयोजित किये जाते हैं| इस कार्यक्रम में आकर युवा-वर्ग पाश्चात्य संस्कृति को त्याग कर धार्मिक कार्यों में मन लगाएगा जिससे उनका आध्यात्मिक व मानसिक विकास होता है|



श्रीमती बबिता झांझरी, रोहिणी (दिल्ली) के सुमधुर भजनों ने सबका मन मोह लिया| अनेकांत महिला मंडल - गौतमपुरी (दिल्ली), श्री जैन सेवा संघ - कैलाश नगर (दिल्ली), श्री गौरव जैन - लक्ष्मी नगर (दिल्ली) तथा जैन समाज नजफगढ़ (दिल्ली) द्वारा बच्चों ने अतिभव्य मनमोहक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किये गए| सभा के मध्यस्थ लक्की ड्रा के माध्यम से चयनित 11 महानुभावों को 1-1 किलो शुद्ध चांदी के सिक्के प्रदान किये गए| त्रिलोक तीर्थ कमिटी द्वारा सुबह से शाम तक जलपान व भोजन की सुन्दर व्यवस्था सुचारु रूप से चलती रही|



श्री दिगम्बर जैन मन्दिर कार्यकारिणी समिति, न्यू रोहतक रोड, करोल बाग (दिल्ली) के तत्वावधान में आयोजित इस भव्य समारोह ने प्रभावना का नया कीर्तिमान स्थापित किया| आयोजन समिति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री सुनील जैन (शक्ति नगर), श्री पंकज जैन (कैलाश नगर), श्री सुनील जैन (रिषभ विहार), श्री समीर जैन (पीतमपुरा), श्री शरद जैन (जागृति एन्कलेव), श्री नवीन जैन (इन्दिरापुरम), श्री अरविन्द जैन (केशव पुरम), श्री नितिन जैन (विवेक विहार), श्री अमित जैन (गौतमपुरी), श्री संदीप जैन (गौतमपुरी), श्री संदीप जैन (बलबीर नगर), श्री मनीष जैन (शांति विहार), श्री 1008 चन्द्रप्रभु वीर सेवा मण्डल (गौतमपुरी), श्री जैन युवा संगठन (गौतमपुरी), जैन यूथ काउंसिल (दिल्ली प्रदेश) आदि कर्मठ कार्यकर्ताओं ने समारोह को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग किया|


उल्लेखनीय है कि एलाचार्य श्री का लगभग 10 वर्षों के पश्चात् इस क्षेत्र पर मंगल पदार्पण दिनांक 31 दिसंबर 2017 को सैकड़ों श्रावक व बैंड-बाजों के साथ हुआ| इस अवसर पर क्षेत्र पर विराजमान समस्त साधु-संतों ने एलाचार्य श्री का मंगल स्वागत किया| नव-वर्ष की पूर्व संध्या पर ब्र. राज किंग जैन, अशोक नगर (म.प्र.) द्वारा भव्य भजन संध्या का आयोजन प्राचीन बड़ा मंदिर के प्रांगण में किया गया|

साधु व समाज की गरिमा बचाने हेतु

विचार-विमर्श सभा संपन्न
साधु को दंड देने का अधिकार समाज के पास नहीं - एलाचार्य अतिवीर मुनि



साधुओं में बढ़ते शिथिलाचार तथा दिन-प्रतिदिन हो रही अप्रिय घटनाओं की रोकथाम कैसे हो - इस विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए एक अति-आवश्यक बैठक का आयोजन दिनांक 11 नवंबर 2017 को श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, नवीन शाहदरा, दिल्ली में किया गया| श्रमण व श्रावक की बढ़ती स्वच्छंदता के दुष्परिणामों से चिंतित परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने दिल्ली जैन समाज में जागृति लाने के उद्देश्य से इस बैठक की रूपरेखा तैयार की तथा अपना पावन सान्निध्य इस बैठक में प्रदान किया| दिल्ली जैन समाज के अध्यक्ष श्री चक्रेश जैन की अध्यक्षता तथा श्री स्वदेश भूषण जैन के निर्देशन में आयोजित इस महत्वपूर्ण बैठक में दिल्ली के विभिन्न मंदिरों के पदाधिकारीगण, समाज के वरिष्टजन, बुद्धिजीवी वर्ग व अनेक गणमान्य महानुभाव सम्मिलित हुए| उपस्थित समाजजन ने एक स्वर में श्रमण व श्रावक में बढ़ते शिथिलाचार पर गहन चिंता व्यक्त की तथा इसके रोकथाम हेतु सख्त नियम बनाने का आह्वान किया| सभी ने एकमत होकर दिल्ली के मंदिरों के लिए कुछ नियम बनाने के लिए विचार किया जिनका पालन हर हाल में होना चाहिए तथा साधु वर्ग भी उन्हीं के अनुरूप अपनी चर्या करें|



बैठक को अपने सम्यक उद्बोधन से सम्बोधित करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने कहा कि श्रमण और श्रावक, दोनों को ही अपनी-अपनी मर्यादाओं में रहना चाहिए| श्रमण अपनी चर्या का ख्याल रखे तथा श्रावक अपनी चर्या का ख्याल रखे| श्रमण और श्रावक एक दूसरे के पूरक हैं, कोई भी एक दिग्भ्रमित हो तो दूसरा उसे संभाले| प्राचीन समय में दोनों ही उत्कृष्ट चर्या के धारी होते थे तो दोनों में ही एक दुसरे के लिए आदर-सम्मान व श्रद्धा बनी रहती थी| परन्तु वर्तमान में मर्यादाएं भंग होती नजर आती हैं| कही भी कोई लगाम कसने वाला नहीं है| एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि साधु स्वतंत्र तो है पर स्वछन्द नहीं होता| यदि साधु से कोई गलती हो जाये, तो ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए? आगम में दण्ड व्यवस्था नहीं मिलती, मिलता है तो मात्र सम्यग्दर्शन| सम्यग्दर्शन के अंग - स्थितिकरण, उपगूहन, वात्सल्य आदि हम सब जोश-जोश में भूल जाते हैं और अपना होश खो बैठते हैं|



एक गृहस्थ अपने भीतर वैराग्य को भांपकर अपना सारा जीवन एक सद्गुरु के चरणों में न्यौछावर कर देता है| वह अपना समस्त जीवन गुरु के समक्ष समर्पित कर देता है| तो उससे कोई गलती हो जाये, तो कैसे कोई अन्य उसके जीवन का निर्णय कर सकता है? श्रावक को यह अधिकार कभी नहीं दिया गया कि वह अपने से ऊपर वाले पायदान पर खड़े साधु को सजा देने लगे| श्रावक केवल उनके गुरु के समक्ष उन्हें ले जाकर उनकी गलतियों से गुरु को अवगत करवा सकता है| इसके बाद की जिम्मेदारी गुरु की है| श्रावक अपनी सीमाओं से बाहर ना निकले| यदि श्रावक को ऐसे निर्णय करने का अधिकार दे दिया गया तो यह उज्जवल भविष्य के संकेत नहीं हैं|



एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि यदि पुलिस किसी अपराधी को रंगे हाथों पकड़ भी ले, वह अपराधी अपना जुर्म कबूल भी करले - ऐसी स्थिति में भी पुलिस उस अपराधी को कोई दंड नहीं दे सकती| पुलिस को हर हाल में अपराधी को न्यायमूर्ति (जज) के समक्ष प्रस्तुत करना होगा तथा वहीँ उसके अपराध का फल उसे मिलता है| ठीक इसी प्रकार की व्यवस्था साधु वर्ग में भी मान्य है| एलाचार्य श्री ने दिल्ली जैन समाज के अध्यक्ष श्री चक्रेश जैन जी से एक बार पुनः समाज में एकता का बिगुल बजाकर सभी मंदिरों को एक साथ जोड़ने का आह्वान किया|



इस बैठक में उपस्थित गणमान्य महानुभावों ने भी अपने-अपने विचार व्यक्त किये| श्री दिगम्बर जैन महासमिति केंद्रांचल (दिल्ली) के अध्यक्ष श्री राकेश जैन ने कहा कि साधु गलत नहीं होता, श्रावक ही गलत होते हैं| साधु की चर्या को बिगाड़ने वाले साधन श्रावक ही साधु को उपलब्ध करवाते हैं| किसी भी अप्रिय घटना को व्हाट्सप्प आदि सोशल मीडिया पर डालने से पहले समाज के वरिष्टजनों व नेता को बुलाकर सलाह करनी चाहिए| श्री दिगम्बर जैन महासमिति केंद्रांचल (दिल्ली) के पूर्व अध्यक्ष श्री गोपेन्द्र जैन ने कहा कि आज हम पंचकल्याणक, चातुर्मास आदि आयोजनों पर करोड़ों खर्च कर देते हैं, परन्तु समाजोत्थान हेतु हम एक कोड़ी भी खर्च करने को तैयार नहीं हैं| हमारी संस्थाएं, कमिटियां व श्रावक यदि सुधर जायेंगे तो साधु की चर्या बिगड़ ही नहीं सकती|



विश्व जैन संगठन के अध्यक्ष श्री संजय जैन ने कहा कि साधुओं को मोबाइल, लैपटॉप, इंटरनेट आदि उपकरण प्रयोग करने पर पूर्णतः निषेध होना चाहिए| जो हमारा आगम है, उसे रीराइट नहीं किया जा सकता| जैसा आगम है, वैसा ही पालन करना चाहिए| दिल्ली के सभी मंदिरों के पदाधिकारियों की बैठक बुलाकर एक सशक्त नेता के चुनाव की अति आवश्यकता है| यमुनापार जैन समाज के संस्थापक श्री श्रीकिशोर जैन ने कहा कि हमें शिथिलाचार जैसी विकराल समस्या को हल करने के लिए तीन केंद्र बिंदुओं पर ध्यान देना होगा| 1- समाज का एक नेता हो, वह विनयी हो और उसका इतना दबदबा हो कि सभी उसकी बात माने| 2- सभी त्यागियों के नाम, उनके दीक्षागुरु आदि की सम्पूर्ण जानकारी दिल्ली की शीर्षस्थ संस्थाओं के पास उपलब्ध हो| 3- सोशल मीडिया आदि ऐप्स का प्रयोग दुष्प्रचार की जगह जनोपयोगी जानकारी उपलब्ध करवाने के लिए होना चाहिए|



प्रो. टीकम चंद जैन ने श्रावक संगठन और साधु संगठन बनाने का आह्वान करते हुए कहा कि एक साधु की गलत चर्या से सभी साधुओं पर लांछन नहीं लगाना चाहिए| आज साधुओं ने अपने भक्त और भक्तों ने अपने साधु छांट लिए हैं, यही समस्याओं की जड़ है| सांध्य महालक्ष्मी के संपादक श्री शरद जैन ने कहा कि अगर हर बार गलतियों को दबा दिया जायेगा तो एक दिन यह एक विकराल रूप लेकर उभरेंगी| हम सभी स्वयं को सुधारेंगे तो निश्चित रूप से ऐसी घटनाओं पर रोक लगेगी| बैठक में न्यू रोहतक रोड जैन समाज के महामंत्री श्री ऋषभ जैन, भोलानाथ नगर जैन समाज के वरिष्ठ श्री प्रेम चंद जैन, ऋषभ विहार से श्री सुनील जैन, पटपड़गंज से मास्टर नरेंद्र जैन, युवा परिषद् के श्री बिजेंद्र जैन, बैंक एन्क्लेव जैन समाज के वरिष्ठ श्री माम चंद जैन, इंटरनेशनल जैन फोरम के श्री प्रवीण जैन ने भी अपने विचार व्यक्त किये| सभी ने इस बात को भी स्वीकार किया कि साधु वर्ग में बढ़ते शिथिलाचार का एक कारण समाज की नजरअंदाजगी भी है| समाज अपने कर्त्तव्यों से मुंह मोड़कर भाग रहा है फलस्वरूप साधु वर्ग शनैः-शनैः अपनी व्यवस्थाएं करने में जुट गया है| सभी ने एकस्वर में सहमति जताई कि सूर्यास्त के बाद साधु के पास महिलाएं व साध्वी के पास पुरुष वर्ग का प्रवेश निषेध हो|



सभी वक्तव्यों के पश्चात् बैठक के निर्देशक तथा जिनशरणं - श्री दिगम्बर जैन श्रावक समाज (दिल्ली) के अध्यक्ष श्री स्वदेश भूषण जैन ने कहा कि अब समय आ गया है कि हम अपने दिगम्बरत्व की सांख बरकरार रखे| आज जैनों में ही नहीं अजैनों में भी दिगम्बरत्व पर ऊँगली उठने लगी है| जैन समाज का प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को बड़ा मनवाने के प्रयास में लगा हुआ है| हमें स्वार्थ, पदलोलुपता को छोड़कर जैन समाज के लिए आगे आना होगा| उन्होंने आगे कहा कि हमें चतुर्विध संघ की परंपरा को लेकर चलना होगा जहाँ मुनि-आर्यिका-श्रावक-श्राविका एक दूसरे को संभालें| बैठक के अंत में दिल्ली जैन समाज के अध्यक्ष श्री चक्रेश जैन ने 30 साल पुराना समय और आज के समय की तुलना करते हुए बताया कि पहले मुनिसंघ नगर की सीमा पर आते थे तो बैंडबाजों के साथ हजारों श्रावक उनका स्वागत और आगे विहार करवाने के लिए पहुँचते थे और आज अकेला साधु विहार करते हुए भी नजर आ जाता है| आज प्रवचन श्रृंखलाओं में अध्यात्म की बाते कम, हंसी-मजाक-चुटकुलें ज्यादा सुनने को मिलते हैं| आज बड़े-बड़े आयोजनों में साधु डायरेक्टर बन गया है और सामाज एक्टर| आँखें मूंदकर जय-जय गुरुदेव बोलने की बजाय हम स्वाध्याय करें, सारे हल स्वतः ही मिल जायेंगे| पीतल को सोना समझने की गलती ना करें| साधु, साधु का कार्य करे और श्रावक अपना|


एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज की परिकल्पना हुई साकार
लाखों की भीड़ के साथ दिल्ली में लगा जैन महाकुम्भ

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज एवं श्री जती जी महाराज के पावन आशीर्वाद से तथा परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज की पावन प्रेरणा, कुशल निर्देशन तथा परम सान्निध्य में नव-वर्ष मंगल आगमन के उपलक्ष्य पर जैन समाज के इतिहास में प्रथम बार अद्वितीय, अविस्मरणीय तथा ऐतिहासिक आयोजन राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी नजफगढ़ स्थित श्री दिगम्बर जैन भरतक्षेत्र-पावापुरी मन्दिर परिसर में वर्ष के अंतिम रविवार दिनांक 27 दिसम्बर 2015 को उत्साह पूर्वक सम्पन्न हुआ। पाश्चात्य सभ्यता की चकाचौंध में विलुप्त होती जा रही महान भारतीय संस्कृति के संरक्षण तथा युवा वर्ग में संस्कारोपण के उद्देश्य से ऐसे अनूठे कार्यक्रम की रूपरेखा बनायी गयी जहाँ मनोमंजन के साथ-साथ मनोरंजन का भी भरपूर प्रबंध किया गया था। "उलझनों से दूर, आ जी लें ज़रा..." एक ऐसे महाआयोजन का प्रारूप एलाचार्य श्री की कल्पना के गर्भ से प्रस्फुटित हुआ जो युगों-युगों तक जैन समाज के शंखनाद को गुंजायमान रखेगा। दिल्ली का पश्चिमी छोर तो उस दिन थम सा गया था। कई-कई किलोमीटर लम्बे ट्रैफिक जाम ने दिल्ली के एक किनारे को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि आज यहाँ ऐसा क्या हो रहा है जो सभी गाड़ियां, बसें, स्कूटर आदि भरतक्षेत्र की ओर ही बढ़ रहे हैं। जाम का ऐसा मंजर कभी नहीं देखने को मिला कि लोग कई-कई घंटे एक ही स्थान पर खड़े रह गए और देखते ही देखते सड़क किनारे खाने-पीने की सभी वस्तुएं समाप्त हो गयी और दुकानदार अपना गल्ला समेटकर घर को निकल दिए।

रविवार, दिनांक 27 दिसंबर 2015 का वह दिन अति-पावन प्रतीत हुआ जब सूर्योदय की साथ ही प्रभु भक्ति की गूंज क्षेत्र में गूंजने लगी। दिवस की शुरुवात प्रभु स्मरण से हुई जब जैन समाज के इतिहास में प्रथम बार सैकड़ों जोड़ों द्वारा श्री तीन चौबीसी विधान का अतिभव्य आयोजन प्रारम्भ हुआ। श्री नेमचंद राकेश कुमार जैन द्वारा ध्वजारोहण के साथ कार्यक्रम का श्रीगणेश किया गया। कैलाश पर्वत की अतिभव्य एवं मनमोहक प्रतिकृति को समेटे मुख्य मांडना 50x50 फीट का बनाया गया जिसके साथ ही त्रिकाल चौबीसी के प्रतीकस्वरूप 4x4 फीट के 72 अन्य मांडने बनाये गए थे। अनेक संतों का सान्निध्य, उनके मुखारबिंद से मंगल आशीर्वचन तथा प्रभु-भक्ति का अनुपम दृश्य इस आयोजन को अविस्मरणीय बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था। समस्त मांगलिक क्रियाएँ ब्र. जय कुमार जैन 'निशांत', टीकमगढ़ (म.प्र.) के कुशल नेतृत्व में तथा ब्र. नितिन जैन झांझरी, इंदौर (म.प्र.) आदि जैन समाज के प्रमुख विद्वानों के विधानाचार्यत्व में राम कुमार एण्ड पार्टी (भोपाल) की सुमधुर लहरियों के साथ संपन्न हुईं। विधान के मध्यस्थ अनेकों प्रेरक सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत हुए जिन्होंने उपस्थित जनमानस को आश्चर्यचकित कर डाला। इस पावन सुअवसर पर पूज्य एलाचार्य श्री ने अहिंसा उपकरण मयूर पिच्छिका भी परिवर्तित की। मंगलकारी विधान के मध्यस्थ ही एलाचार्य श्री ने गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज संघ की प्रमुख साध्वी जिनधर्म प्रभाविका आर्यिका श्री 105 सृष्टि भूषण माताजी को "गणिनी पद" प्रदान करने की घोषणा की जिसकी समस्त समाज ने अनुमोदना की। तत्पश्चात एलाचार्य श्री ने माताजी के शीश पर गणिनी पद के संस्कार किये।

दिन के चढ़ते-चढ़ते आयोजन मनोमंजन के बाद मनोरंजन की ओर बढ़ने लगा और एक नया रूप लेने को तैयार हो गया जब राजस्थान के "चोखी-ढाणी" की तर्ज पर एक विशाल जैन मेले का अभूतपूर्व आयोजन परिसर में प्रारम्भ हुआ। विशाल भूखंड पर फैले भरतक्षेत्र परिसर में केवल सिर ही सिर नज़र आ रहे थे। सुबह 7 बजे से लोगो के हुजूम का जो यहाँ पहुँचने का सिलसिला प्रारम्भ हुआ वह रात 8 बजे तक यूँही निर्बाध रूप से चलता रहा। भारी भीड़ को देखते हुए व्यवस्थापकों द्वारा दोपहर में मेले में प्रवेश भी रोकना पड़ा परन्तु वह प्रयास भी विफल ही रहा। बच्चों के लिए खेल-कूद-मस्ती भरे झूले, महिलाओं के लिए चूड़ीवाला, मेहँदीवाला आदि मनमोहक स्टाल तथा एक पूर्ण व्यवस्थित मेले का आयोजन किया गया जिसमें हर वर्ग के व्यक्ति ने आनंद उठाया। गांव की पूरी छवि को लिए यह मेला अपने आप में अद्वितीय रहा। ऐसा माहौल पहले कभी देखने को नहीं मिला। पाश्चात्य संस्कृति के चक्रव्यूह में फंसते जा रहे लोगों को भारतीय परंपरा से भरपूर इस महामेले ने अपनी ओर इस प्रकार आकर्षित किया कि जो एक बार प्रवेश कर गया वह वापिस बाहर ना जा पाया। गांव की चौपाल, पनघट, ज्योतिषी, स्केच, टैटू, कटपुतली, बन्दर-बंदरिया का नाच, सेल्फ़ी कार्नर, निशानेबाजी आदि अनेक विशेष प्रबंध इस मेले में किये गए जो वास्तव में भारत की प्राचीन विरासत की ओर खींच कर ले गए।

शाम होते होते श्री प्रदीप जैन (खंडवा) के निर्देशन में विभिन्न प्रेरक सांस्कृतिक कार्यक्रम विशेष रूप से तैयार किये गए मंच पर प्रस्तुत किये गए। राजस्थानी लोक नृतक, लाफ्टर चैंपियंस, सुर-संग्राम के महारथी, करतब-बाज आदि अनेक रोचक पहलुओं ने इस शाम को यादगार बनाया। मुंबई के प्रसिद्द भजन सम्राट श्री विक्की डी. पारेख ने भी अपने मधुर कंठ से सबको अपनी ओर आकर्षित कर लिया। मेले के मध्यस्थ ही उपस्थित महानुभावों में से 11 सौभाग्यशाली विजेताओं को लक्की ड्रा के माध्यम से हौंडा अमेज़ कार, स्कूटी, मोबाइल, फ्रिज, टीवी आदि बम्पर इनाम जीतने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। लक्की ड्रा कूपन की गिनती ही 90 हजार के पार चली गयी थी जो वहां उपस्थित भीड़ की संख्या का परिचायक स्वयं है। कुछ इनाम दिल्ली में ही तो कुछ दिल्ली से मीलों दूर नगरों में पहुचें तो कुछ इनामों पर अजैनों ने भी अपना भाग्य आजमाया। जिनभक्ति की इस शाम में क्षुल्लक श्री 105 योगभूषण जी महाराज तथा ब्र. नेहा दीदी ने भी अपनी विशेष प्रस्तुति से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया। इतना ही नहीं समस्त मेले में चाट-खोमचा, सनैक्स, स्वादिष्ट भोजन की भरपूर व्यवस्था की गयी जिसका लुत्फ़ धैर्य रखने वालों ने भरपूर उठाया। इस सुअवसर पर दिल्ली जैन समाज के प्रबुद्धजनों ने श्री श्रीपाल जैन (शालीमार बाग) को लाइफ टाइम एचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया। एलाचार्य श्री की संघ व्यवस्था के सुचारू सञ्चालन हेतु श्री राकेश जैन (अशोक विहार) को विशिष्ट संघपति, श्री अश्वनी-अनुज-दीपक जैन (गली गुलियान) को मुख्य संघपति तथा श्री अंकुर जैन (सूर्य नगर) को संघपति नियुक्त किया गया। श्री पवन जैन गोधा (शक्ति नगर) को श्रावक रत्न की उपाधि से विभूषित किया गया। सभी सम्मानित पात्रों को तिलक, पटका तथा प्रशस्ति पत्र भेंट किया गया।

दिन तो धीरे-धीरे ढल गया और मौसम ने भी करवट ली परन्तु मेले का जोश अभी ठंडा नहीं हुआ था। सभी कार्यक्रमों के साथ ही सायं काल में श्रीजी की हजारों दीपकों से महा-आरती करने का अनुपम अवसर भी उपस्थित महानुभावों को प्राप्त हुआ। अद्वितीय लाइटिंग व्यवस्था से जगमगाता भरतक्षेत्र परिसर तथा हजारों टीम-टिमाते दीपकों के प्रकाश से अत्यंत रमणीय नज़ारा देखना को मिला। वाकई ऐसा आयोजन आज तक तो कही नहीं देखा। मेले में प्रवेश, सांस्कृतिक कार्यक्रम, सुबह से शाम तक का सम्पूर्ण भोजन, इनाम, खेल-कूद व झूले इत्यादि समस्त व्यवस्थाएं पूर्ण रूप से निःशुल्क थी। तीन चौबीसी विधान-महोत्सव आयोजन समिति के तत्वावधान में तथा सकल जैन समाज नजफगढ़ के विशेष सहयोग से आयोजित इस भव्यतिभव्य विशाल समारोह में जो सम्मिलित ना हुआ, वह अवश्य ही पछता रहा होगा। विधान का भव्य पांडाल, आकर्षक कैलाश पर्वत रचना, मनमोहक मांडले तथा जिन-पूजन का ऐसा प्रारूप वास्तव में एलाचार्य श्री की विस्तृत सोच तथा नयेपन को उजागर कर रही थी। दिल्ली, गाज़ियाबाद, रोहतक, गुडगाँव, अलवर, रेवाड़ी, बहादुरगढ़, पानीपत, सोनीपत, गन्नौर, सहारनपुर, रामपुर मनिहारान, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, सरधना, बड़ौत, बागपत, खेकड़ा, छपरौली, इंदौर, नागपुर, नीमच, मुंबई, लखनऊ आदि दिल्ली-एनसीआर का शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र बचा होगा जहाँ से लोग इस महामेले में सम्मिलित न हुए हों।

नजफगढ़ में निकला विशाल मौन जुलूस

राजस्थान हाई कोर्ट द्वारा पिछले दिनों जैन दर्शन के अभिन्न अंग संथारा/सल्लेखना पर प्रतिबन्ध लगा दिया। इस फैसला पर देश भर में जैन समाज के विरोधी स्वर सुने जा रहे हैं। ऐसा ही कुछ सोमवार, दिनांक 24 अगस्त 2015 को राजधानी दिल्ली के नजफगढ़ क्षेत्र में भी देखने को मिला। जैन समाज के विख्यात संत परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के सान्निध्य में विशाल धर्मसभा का आयोजन प्राचीन श्री दिगम्बर जैन मन्दिर में किया गया जिसमें भारी संख्या में मुनिभक्तों ने सम्मिलित होकर एकता का परिचय दिया। सभी के मन में इस फैसले के प्रति भारी रोष व्याप्त था। विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने सल्लेखना के महत्व पर प्रकाश डाला। एलाचार्य श्री ने बताया कि जिस प्रकार एक मन्दिर की शोभा शिखर के कलश से होती है ठीक उसी प्रकार संतत्व की शोभा समाधिमरण से होती है। सल्लेखना को आत्महत्या की उपमा देना निराधार है। सल्लेखना धारण करने में जीव के परिणाम पर-द्रव्य एवं पर-भावों से भिन्न एवं पर के कर्ता-भोक्ता से रहित होते हैं तथा अपने शुद्ध-चैतन्य में ही स्थिर होते हैं। बाह्य में होने वाली अनुकूलता एवं प्रतिकूलता से अपना लाभ-अलाभ न मानते हुए सामान्य भावों के साथ सल्लेखना धारण की जाती है।

एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि जैन दर्शन में जहाँ अहिंसा के सिद्धांत को गूढ़ता के साथ गूंथा गया है वहां आत्महत्या जैसे निकृष्ट क्रिया को स्थान कैसे दिया जा सकता है। न्यायलय में दायर याचिका के खिलाफ शायद जैन समाज के गणमान्य महानुभावों ने पर्याप्त साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किये जिसके कारण न्यायधीश द्वारा ऐसा फरमान जारी किया गया। एलाचार्य श्री ने कहा कि यह सही है कि ऐसे फैसले से समूचा जैन समाज आहत है परन्तु न्यायलय की प्रक्रिया को कानून व्यवस्था के अनुरूप ही सुलझा लिया जाये, तो बेहतर है। जैन श्रमण एवं श्रावक पर आये इस उपसर्ग से हम सभी को एक साथ मिलकर अहिंसक एवं शिष्टाचार पूर्वक निपटना होगा। नजफगढ़ जैन समाज के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा भी सल्लेखना पर मार्मिक उद्बोधन प्रदान किया गया।

तत्पश्चात समस्त नगर में विशाल मौन रैली निकाली गयी। इस रैली में समाज के बच्चे, बूढ़े, महिला, पुरुष सभी सम्मिलित हुए तथा सभी ने अपना विरोध प्रदर्शित किया। सभी के हाथों में जैन ध्वज, विरोध पट्टिकाएं, बैनर आदि थे। जैन समाज के सभी प्रतिष्ठान, स्कूल, कॉलेज, दुकाने, दफ्तर आदि पूर्ण रूप से बंद थे। सकल जैन समाज ने एकजुट होकर इस मसले पर एकता का परिचय देते हुए अपने विरोध प्रस्तुत किया। मौन रैली प्राचीन मन्दिर से प्रारम्भ होकर मेन मार्किट, प्रमुख चौराहे आदि नगर के मुख्य मार्गों से होते हुए वापिस श्री मन्दिर जी पर संपन्न हुई। सभी के बाजुओं पर काली पट्टी बंधी हुई थी|


दिल्ली में संपन्न हुआ विद्वत प्रशिक्षण, अधिवेशन एवं पुरस्कार समर्पण
प्रथम बार सम्मिलित हुए शताधिक विद्वान

अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद के तत्वावधान में देशभर के वरिष्ठ विद्वानों के निर्देशन में युवा विद्वानों के लिए शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर का विराट आयोजन दिनांक 2 से 7 जून 2015 तक एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य में राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी अशोक विहार फेज-1 में भव्यता पूर्वक किया गया। डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत) की अध्यक्षता, ब्र. जय कुमार जैन निशांत (टीकमगढ़) के प्रवर्तन तथा पं. विनोद कुमार जैन (रजवांस) के संयोजन में शिविर का शुभारम्भ दिनांक 2 जून 2015 को चित्र अनावरण, दीप प्रज्जवलन, जिनवाणी स्थापना, कलश स्थापना आदि मांगलिक क्रियाओं के साथ किया गया। प्रतिदिन प्रातः कालीन सत्र में अभिषेक, पूजन, मंत्र विज्ञान आदि विषयों पर वरिष्ठ विद्वानों द्वारा प्रशिक्षण प्रदान किया गया। दोपहर कालीन सत्र में विभिन्न विषयों में महारथ प्राप्त कर चुके प्रकांड विद्वतजनों द्वारा जैन न्याय, सम्यक्दर्शन, प्रतिष्ठा विधि-विधान, तत्वार्थ सूत्र आदि गूढ़ विषयों पर प्रकाश डाला गया। सायं कालीन सत्र में प्रवचन कला, वास्तु सम्बन्धी बिन्दुओं पर प्रशिक्षण दिया गया।

शास्त्री परिषद के प्राप्त इतिहास में यह प्रथम अवसर था जब देश के कोने-कोने से लगभग 125 विद्वतजन, ब्रह्मचारीगण तथा विद्यार्थीगण इस शिक्षण-प्रशिक्षण शिविर में सम्मिलित हुए। शिविर के प्रातः कालीन तथा दोपहर कालीन सत्र को पूज्य एलाचार्य श्री का प्रेरक सान्निध्य, कुशल मार्गदर्शन तथा सारगर्भित विवेचन प्राप्त हुआ। दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से भी भारी संख्या में श्रुतप्रेमी ज्ञानार्जन हेतु पधारे तथा उच्चकोटि के विद्वानों से तर्क-वितर्क कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। वयोवृद्ध विद्वान पं. मूलचंद जैन लुहाड़िया (किशनगढ़), डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत), डॉ. जय कुमार जैन (मुज़फ्फरनगर), प्रो. वृषभ प्रसाद जैन (लखनऊ), पं. पवन कुमार जैन दीवान (मुरैना), ब्र. जय कुमार जैन निशांत (टीकमगढ़), ब्र. अनिल जैन जैसे ज्ञानी श्रुताराधकों द्वारा प्रशिक्षण वास्तव में ज्ञान चक्षुओं को तृप्त कर देने वाला था। दिनांक 6 जून 2015 को सायं काल में अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद की कार्यकारिणी बैठक आयोजित हुई जिसमें विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा हुई।

दिनांक 7 जून 2015 को शास्त्री परिषद का खुला वार्षिक अधिवेशन तथा पुरस्कार समर्पण समारोह आयोजित किया गया। एलाचार्य श्री तथा वरिष्ठ विद्वानों के मंचासीन होने के पश्चात सभा का शुभारम्भ चित्र अनावरण तथा दीप प्रज्जवलन से किया गया। शास्त्री परिषद के महामंत्री ब्र. जय कुमार जैन निशांत (टीकमगढ़) ने सभा का सञ्चालन करते हुए शास्त्री परिषद की गतिविधियों तथा उपलब्धियों पर प्रकाश डाला तथा गत वर्ष संपन्न अधिवेशन की रिपोर्ट प्रस्तुत की। शास्त्री परिषद के कोषाध्यक्ष पं. सुखमाल चंद जैन (सहारनपुर) ने गत वर्ष हुए आय-व्यय का ब्यौरा प्रस्तुत किया। उपस्थित विद्वानों ने अपने-अपने विचार प्रस्तुत किये। साधु वर्ग में बढ़ते जा रहे शिथिलाचार तथा समाज में बढ़ती जा रही विकृतियों पर अपनी पैनी नज़र रखते हुए कार्यकारिणी बैठक में पास किये गए विभिन्न प्रस्तावों का वाचन किया गया। शास्त्री परिषद के अध्यक्ष डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (बड़ौत) ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्रमण एवं श्रावक के विभिन्न कर्तव्यों पर प्रकाश डाला तथा समाज में विद्वानों की भूमिका पर भी टिप्पणी की। अध्यक्ष महोदय ने जैन धर्म की प्राचीनता तथा दिगंबर वेश की महत्ता पर भी शास्त्रीय पहलु प्रस्तुत किये।

अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद प्रति वर्ष प्रतिभावान, कुशल लेखक, अनुवादक-संपादक, प्रखरवक्ता, प्रतिष्ठा विधि, पत्रकारिता, शोधकर्ता विद्वानों को पुरस्कार प्रदान कर उनके कृतित्व को बहुमान देती है। प्रत्येक पुरस्कार में 11000 रुपये की राशि, प्रशस्ति पत्र, शॉल एवं श्रीफल प्रदान सम्मान पूर्वक प्रदान किये जाते हैं। एलाचार्य श्री के सान्निध्य में इस वर्ष पं. रतनलाल जैन बैनाड़ा (आगरा) को पं. श्री रामस्वरूप जैन शास्त्री स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, पं. मूलचंद जैन लुहाड़िया (किशनगढ़) को वाणीभूषण पं. बाबूलाल जैन जमादार स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, ब्र. जिनेश मलैया (इंदौर) को श्रेष्ठि श्री मिश्रीलाल बैनाड़ा स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, पं. उदयचन्द्र जैन शास्त्री (सागर) को पं. मुन्नालाल जैन प्रतिष्ठाचार्य स्मृति ट्रस्ट शास्त्री परिषद पुरस्कार, पं. अनंदीलाल जैन (बांसवाड़ा) को पं. श्री प्रसन्न कुमार स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, पं. अजित कुमार जैन (दिल्ली) को श्री पवन कुमार जैन विद्रोही स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, डॉ. आशीष जैन (शाहगढ़) को श्री फूलचंद जैन सेठी स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार, पं. संजीव कुमार जैन (अहमदाबाद) को श्रेष्ठि श्री अमरचन्द्र पहाड़िया स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार तथा पं. राजेश जैन (श्रवणबेलगोला) को श्रेष्ठि श्री प्रेमचंद जैन स्मृति शास्त्री परिषद पुरस्कार प्रदान कर सम्मानित किया गया। 

सभा के अंत में एलाचार्य श्री द्वारा प्रेरक उद्बोधन प्रदान किया गया। समाज में विद्वानों की प्रतिष्ठा एवं भूमिका पर प्रकाश डालते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने बताया कि किस प्रकार प्राचीन समय में समाज का हर वर्ग विद्वानों का आदर-सत्कार करता था तथा किस प्रकार विद्वत वर्ग भी अपनी मर्यादा को बनाये रखता था। एलाचार्य श्री ने सकल समाज तथा विद्वत वर्ग से आह्वान किया कि आज वर्तमान समय में भी हम सभी को विद्वानों की गरिमा तथा प्रतिष्ठा को बनाये रखना है। युवा विद्वानों तथा स्वाध्याय प्रेमियों के लिए इस शिविर को ज्ञानार्जन का अपूर्व अवसर बताते हुए एलाचार्य श्री ने कहा कि आगामी समय में समाज के बच्चों के लिए भी इस प्रकार के प्रशिक्षण शिविर विद्वानों द्वारा आयोजित किये जाने चाहिए

पूज्य एलाचार्य श्री ने घोषणा करते हुए कहा कि अब से प्रत्येक वर्ष जहाँ भी हमारा चातुर्मास होगा वहां शास्त्री परिषद के तत्वावधान में तथा श्री अरविन्द जैन परिवार (केशव पुरम) की ओर से प्रकांड विद्वानों के लिए आचार्य पूज्यपाद स्वामी पुरस्कार प्रदान किया जायेगा जिसमें विद्वानों को सम्मान स्वरुप 51 हज़ार रुपये की राशि भेंट की जाएगी। अगले वर्ष का प्रशिक्षण शिविर एवं अधिवेशन अपने नगर में आयोजित करवाने हेतु सकल त्रिनगर जैन समाज ने एलाचार्य श्री तथा शास्त्री परिषद के पदाधिकारियों को श्रीफल भेंट कर निवेदन किया। सभा का समापन जिनवाणी स्तुति से हुआ। श्री अशोक विहार दिगम्बर जैन सोसाइटी (रजि.), श्री जैन नवयुवक मित्र मंडल तथा जैन महिला जागृति संगठन के समस्त पदाधिकारियों का इस आयोजन को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग प्राप्त हुआ

एलाचार्य अतिवीर जी द्वारा ज्ञानवर्धक शीतकालीन वाचना सम्पन्न

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता पंचम पट्टाचार्य परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निधय में राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी अशोक विहार फेज-1 में व्यापक धर्म एवं ज्ञान प्रभावना संपन्न हुई। प्रतिदिन यहाँ प्रातः काल में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज कृत श्री पुरुषार्थ देशना पर एलाचार्य श्री द्वारा सारगर्भित विवेचन प्रदान किया गया। भीषण जाड़े में भी श्रद्धालुजन प्रातः 5.45 बजे ही शास्त्र श्रवण के लिए पहुँच जाते थे। तत्पश्चात एलाचार्य श्री के सान्निधय में जिनभिषेक एवं शान्ति-धारा से वातावरण धर्ममय हो जाता था। प्रतिदिन की मार्मिक विवेचना में एलाचार्य श्री ने समस्त समाज को सम्यग्दर्शन की प्राप्ति हेतु प्रेरित किया। सम्यग्दर्शन की व्याख्या करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने कहा कि मोक्ष मार्ग पर बढ़ने के लिए सम्यग्दर्शन ही प्रथम सीढ़ी है। इसके बिना समस्त धार्मिक क्रियाएँ निरर्थक एवं निष्फल हैं। एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि वीतरागी प्रभु के वचनों पर दृढ़ श्रद्धान करने से ही सम्यग्दर्शन सुदृढ़ होता है। 


प्रातः 8.00 बजे से श्री भक्तामर स्तोत्र पर विशेष शिक्षण कक्षा का आयोजन हुआ जिसमें दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से धर्मानुरागी बंधुओं ने सम्मिलित होकर धर्मार्जन किया। इस कक्षा में एलाचार्य श्री ने सर्वप्रथम श्री भक्तामर जी के महात्मय, तिलका छंद, आचार्य मानतुंग जी के भाव आदि के साथ-साथ संस्कृत व्याकरण सम्बन्धी नियमों का गहन पाठन करवाया। शुद्ध उच्चारण हेतु एलाचार्य श्री ने स्वराघात विधि, दीर्घ-ह्रस्व स्वर, संधि आदि के बहुत ही उपयोगी बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। विद्यालय के अध्यापक की भांति एलाचार्य श्री ने भक्तामर जी के प्रत्येक काव्य को ब्लैक-बोर्ड पर लिख कर समझाया जिससे सभी के उन्सुल्झी गुत्थियां सुलझ गयी। प्रत्येक काव्य का शुद्ध उच्चारण तथा भावार्थ सभी विद्यार्थियों को अब सहज ही समझ आने लगा था।

शीतकालीन वाचना के प्रथम अध्याय में आयोजित अष्टाह्निका पर्व के प्रसंग पर श्री 1008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान के साथ आचार्य श्री कुन्द-कुन्द स्वामी विरचित श्री रयणसार ग्रंथराज की विवेचना सायं काल में प्रारम्भ हुई थी। श्रमण एवं श्रावक की चर्या सम्बन्धी नियमों का तर्क-सम्मत एवं स्पष्ट पाठन एलाचार्य श्री ने इस कक्षा के माध्यम से किया। यह प्रथम अवसर था जब अशोक विहार क्षेत्र में गुरु-मुख से किसी ग्रन्थ का स्वाध्याय संपन्न हुआ हो। इस विशेष अवसर पर दिनांक 21 दिसम्बर 2014 को श्री भक्तामर विधान का भव्य आयोजन किया गया। विधान की विशेषता रही कि विधानाचार्य एवं संगीतकार होते हुए भी सभी बंधुओं ने भक्तामर जी के काव्यों का स्वयं ही शुद्ध उच्चारण किया जिससे एक अलग ही माहौल निर्मित हुआ। रयणसार जी के निर्विघ्न समापन के पश्चात आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज कृत श्री स्वरुप सम्बोधन का स्वाध्याय प्रारम्भ हुआ। 

लगभग तीन माह के प्रवास से एलाचार्य श्री के सान्निधय में यहाँ ज्ञान की गंगा अविरल बहती रही। शीतकालीन वाचना समापन के अवसर पर दिनांक 18 जनवरी 2015 को श्री भक्तामर विधान का भव्य आयोजन हुआ तत्पश्चात 10 घंटे के लिए श्री भक्तामर जी का संगीतमय अखण्ड पाठ किया गया। इस अवसर पर समस्त समाज के लिए प्रातःकालीन नाश्ता, दोपहर एवं सायं काल में स्वादिष्ट भोजन तथा रात्रि में केसरिया दूध की सुन्दर व्यवस्था की गयी थी। प्रथम तीर्थेश श्री 1008 आदिनाथ भगवान के निर्वाण कल्याणक दिवस के पुनीत उपलक्ष्य पर जिनभिषेक, शान्ति-धारा एवं नित्य-नियम पूजन के पश्चात निर्वाण लाडू चढ़ाया गया। स्वाध्याय कक्षाओं में सम्मिलित हुए समस्त ज्ञान-पिपासुओं को समाज के दानी महानुभावों द्वारा विशेष उपहार प्रदान किये गए। इस दरम्यान एलाचार्य श्री का अशोक विहार क्षेत्र में पधारे अनेक दिगम्बर एवं श्वेताम्बर संतों से मंगल वात्सल्य मिलन हुआ जिससे समाज में संगठन एवं एकता का सन्देश प्रसारित हुआ।


दिल्ली में एलाचार्य अतिवीर जी के आचार्य पद की अनुमोदना

राजधानी दिल्ली के इतिहास में प्रथम बार विभिन्न संघों से लगभग 20 मुनिराजों के परम पावन सान्निधय एवं निर्देशन में प्राचीन कलाकृति से युक्त द्वारका क्षेत्र में नवनिर्मित श्री दिगम्बर जैन रतनत्रय जिनमन्दिर, सेक्टर-10 के श्री 1008 मज्जिनेन्द्र जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा एवं गजरथ महोत्सव का ऐतिहासिक एवं विराट आयोजन दिनांक 6 से 12 फरवरी 2014 तक आयोजित किया गया। श्वेतपिच्छाचार्य श्री 108 विद्यानन्द जी मुनिराज के आशीर्वाद से तथा एलाचार्य श्री 108 प्रज्ञ सागर जी महाराज की अनुपम एवं विलक्षण सोच के फलस्वरूप समारोह में आचार्य श्री 108 सिद्धांत सागर जी महाराज ससंघ, आचार्य श्री 108 विशद सागर जी महाराज ससंघ, एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी महाराज, उपाध्याय श्री 108 सौभाग्य सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 विहर्ष सागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री 108 विशोक सागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री 108 विभंजन सागर जी महाराज तथा स्वस्ति श्री लक्ष्मीसेन जी, श्री देवेन्द्रकीर्ति जी एवं श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी का मंगल सान्निधय एवं निर्दशन प्राप्त हुआ। त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के कुशल निर्देशन में भव्य जन्म कल्याणक महोत्सव का विशाल आयोजन रविवार, दिनांक 9 फरवरी 2014 को किया गया। 

 
समारोह के सञ्चालन में उस पल आश्चर्यजनक मोड़ आ गया जब विराजमान साधुसंतों, भट्टारकों तथा विद्वानों की सर्वसम्मति से एलाचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी महाराज ने एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज को 'आचार्य' कहकर सम्बोधित किया। श्री प्रज्ञ सागर जी ने कहा कि अतिवीर जी एक गहन साधक, चिंतक, कुशल निर्देशक एवं संचालक हैं। इनके भीतर अथाह ज्ञान भण्डार तथा प्रखर गुणों को देखते हुए आज इस मंच से हम सभी साधु अतिवीर जी महाराज को आचार्य पद प्रदान करना चाहते हैं। और रही बात पद के संस्कार की तो आगामी समय में आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज से संस्कार संपन्न करवाएंगे। मंचासीन आचार्य श्री सिद्धांत सागर जी महाराज ससंघ, आचार्य श्री विशद सागर जी महाराज ससंघ, एलाचार्य श्री प्रज्ञ सागर जी महाराज, उपाध्याय श्री सौभाग्य सागर जी महाराज, मुनि श्री विहर्ष सागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री विशोक सागर जी महाराज ससंघ, मुनि श्री विभंजन सागर जी महाराज तथा स्वस्ति श्री लक्ष्मीसेन जी, स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी ने मयूर पिच्छिका उठाकर एक स्वर में इसकी अनुमोदना की। डॉ. श्रेयांस कुमार जैन (अध्यक्ष, शास्त्री परिषद्) ने भी इस बात का समर्थन करते हुए कहा कि यदि एलाचार्य श्री को सभी विधि-विधान पूर्वक यह पद मिलता है तो हम सभी विद्वतजन भी इसकी अनुमोदना करते हैं। विद्वत वर्ग की सहमति से इस प्रस्ताव को और ज्यादा मज़बूती मिल गयी। यह घोषणा होते ही समस्त पाण्डाल में 'आचार्य श्री अतिवीर जी महाराज' के जयकारों से वातावरण गुंजायमान हो गया। 

श्री त्रिलोक तीर्थ धाम, बड़ागांव (उ.प्र.) से पधारे अध्यक्ष श्री गजराज जैन गंगवाल ने मंच से घोषणा की कि गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज की समाधि के पश्चात् समस्त त्रिलोक तीर्थ कमिटी एलाचार्य श्री को संघनायक नियुक्त करते हुए आचार्य पद पर सुशोभित करना चाहते हैं। आचार्य श्री के अधूरे सपने को सम्पूर्ण करने तथा संघ व्यवस्था के सुचारु सञ्चालन हेतु एलाचार्य श्री का निर्देशन अत्यावश्यक है। श्री गंगवाल जी ने अपनी भावना व्यक्त करते हुए आगे कहा कि वर्ष 2015 में आयोजित होने जा रहे त्रिलोक तीर्थ के वृहद् पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन अतिवीर जी महाराज के निर्देशन एवं सान्निधय में संपन्न हो। इन सभी चर्चाओं को विराम देते हुए एलाचार्य श्री अतिवीर जी मुनिराज ने कहा कि आज हम अजीब धर्मसंकट में फंस गए हैं। कुछ माह पूर्व हमने नियम लिया था कि अब जीवन में कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे। जो कुछ भी मिलना था, गुरुवर आचार्य श्री से स्वयमेव मिल गया था। अब किसी अन्य पद की अभिलाषा शेष नहीं। एक ओर यह नियम है जिसे हम तोड़ नहीं सकते और दूसरी ओर आचार्य/एलाचार्य/मुनिराजों के शब्द हैं जिन्हें हम गिरा नहीं सकते। इस विषय पर हम आगे विचार करेंगे परन्तु अभी इस पद को हम स्वीकार नहीं कर सकते। 
युवा शक्ति ने सुलझा दी उलझनें
जैन यूथ काउंसिल द्वारा हुआ भव्य आयोजन

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज की प्रेरणा एवं आशीर्वाद से युवाओं को सद्मार्ग पर लगाने हेतु गठित जैन यूथ काउंसिल (दिल्ली प्रदेश) के तत्वावधान में राजधानी दिल्ली स्थित बैंक एन्क्लेव (लक्ष्मी नगर) में नव वर्ष 2014 आगमन की पूर्व संध्या पर दिनांक 31 दिसम्बर 2013 को रात्रि 8.00 बजे से आकर्षक एवं रंगारंग कार्यक्रम का विराट आयोजन एलाचार्य श्री के सान्निधय में ऐतिहासिक रूप से सानंद संपन्न हुआ। 'उलझनों से दूर, आ जी लें ज़रा...' नामक इस भव्य समारोह का शुभारम्भ पाण्डाल उद्घाटन से हुआ। काउन्सिल के सदस्यों तथा समाज की महिलाओं द्वारा सभी का तिलक, चमकीली लगाकर द्वार पर भव्य स्वागत किया गया तथा वर्ष 2014 का टेबल केलिन्डर, कागज़ के सुगन्धित पुष्प, मंगल दीप आदि सामग्री भेंट की गई। मंच उद्घाटन के पश्चात् मंगलाचरण हुआ तथा ध्वजारोहण, चित्र अनावरण, जिनवाणी विराजमान, दीप प्रज्जवलन, शास्त्र भेंट आदि मांगलिक क्रियाएँ संपन्न हुईं। बैंक एन्क्लेव जैन समिति द्वारा सभी पात्रों का एवं समारोह अध्यक्ष का तिलक, पटका तथा विशेष सुसज्जित उपहार प्रदान कर सम्मान किया गया। जैन समाज के वरिष्ट एवं गणमान्य महानुभावों ने पधारकर समारोह का गौरव बढ़ाया तथा सभी को पगड़ी पहनाकर तथा शाल एवं उपहार प्रदान कर सम्मानित किया गया।
 
श्री जैन सेवा संघ (कैलाश नगर) द्वारा एक अत्यंत मनोरम नृत्य नाटिका का मंचन किया गया तथा एलाचार्य श्री को समर्पित भावपूर्ण प्रस्तुति सभी के आकर्षण का केंद्र बना रहा। समाज में युवाओं को पहचान दिलाने के उद्देश्य से हमारे कर्मठ युवा साथी श्री श्रेयांस जैन 'चूचू' (कैलाश नगर) तथा श्री 1008 चन्द्रप्रभु वीर सेवा मण्डल (गौतमपुरी) के सभी सदस्यों को धार्मिक गतिविधियों में युवाओं को प्रेरित करने हेतु जैन युवा रत्न की उपाधि से अलंकृत किया गया। इन सभी युवाओं को तिलक लगाकर मोतियों की पंचलड़ी माला तथा पटके पहनाये गए। एलाचार्य श्री का स्वर्ण चित्र एवं प्रशस्ति पत्र भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में उपस्थित महानुभावों में लक्की ड्रा के माध्यम से चयनित 12 सौभाग्यशाली महानुभावों को फ्रिज, एल.सी.डी., होम थिएटर आदि आकर्षक उपहार निःशुल्क प्रदान किये गए। 31 बच्चों को भी लक्की ड्रा द्वारा मनोहारी उपहार प्रदान किये गए। नन्हे-मुन्ने तथा नटखट बच्चों के लिए मिनी अप्पू घर में मजेदार झूलों की व्यवस्था बनाई गयी थी।

जैन यूथ काउन्सिल के सदस्यों द्वारा समाज के वर्त्तमान दशा को प्रगट करती अत्यंत मार्मिक नाटिका का मंचन किया गया। नाटिका के माध्यम से दिखाया गया कि किस प्रकार वर्त्तमान का श्रावक धार्मिक क्रियाओं के नाम पर पाखंड करने में व्यस्त है। किस प्रकार स्वार्थ के वशीभूत होकर हम लोग नित नए आडम्बरों में लिप्त हुए जा रहे हैं। भगवान महावीर स्वामी की वाणी को तोड़-मोड़ कर पेश करना जैसे हमारी एक आदत सी बन गयी है। वर्त्तमान के इन सभी कुकृत्यों को देखकर शायद हमारे भीतर विद्यमान महावीर सिसक पड़े होंगे। इसी भाव को प्रदर्शित करने हेतु नाटिका का नाम 'सिसकता महावीर' रखा गया। नाटिका के अंत में पंथवाद की बेड़ियों में जकड़े शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की व्यथा को सबके समक्ष प्रस्तुत किया गया जिसे देखकर उपस्थित जनसमुदाय सिहर उठा। धर्म एवं तीर्थ संरक्षण के प्रति सबको जागरूक करने हेतु जैन यूथ काउन्सिल के इस प्रयास की सभी ने हाथ उठाकर अनुमोदना की। नयन प्रभावना प्रतियोगिता के दिसम्बर अंक का लोकार्पण भी समारोह के मध्यस्थ बैंक एन्क्लेव जैन समिति द्वारा किया गया।   
रात्रि 12 बजते ही अत्यंत उत्साहित विशाल जनसमुदाय ने श्रीजी के जयकारों से समस्त वातावरण गुंजायमान कर दिया तथा श्रीमती बबिता जैन झांझरी (रोहिणी) के मधुर संगीत लहरियों के साथ गुरुभक्ति कर एलाचार्य श्री का विशेष मौन आशीर्वाद प्राप्त किया। मंच सञ्चालन श्री शरद जैन - श्री प्रवीण जैन (संध्या महालक्ष्मी) द्वारा किया गया। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनसमुदाय द्वारा भव्य मंगल महाआरती की गयी। कार्यक्रम में अन्न एवं जमीकंद रहित जलपान की उत्तमस्थ व्यवस्थ सभी आगंतुक महानुभावों के लिए रखी गयी थी। जैन समाज के इतिहास में सम्भवतः प्रथम अवसर आया जब केवल युवाओं के काँधे पर इतने विराट आयोजन की बागडोर थी तथा इतने भव्य कार्यक्रम का ऐतिहासिक आयोजन बुलंदियों को स्थापित करता हुआ सानंद संपन्न हुआ। राजधानी दिल्ली के समस्त कालोनियों साथ-साथ बड़ौत, शामली, खेकड़ा, मेरठ, फरीदाबाद, गुडगाँव, साहिबाबाद, रोहतक, बहादुरगढ़ आदि अनेक निकटवर्ती नगरों से लगभग 6 हजार धर्मानुरागी बंधुओं ने उपस्थित होकर युवाओं का उत्साहवर्धन किया तथा कार्यक्रम को ऐतिहासिक रूप प्रदान किया। 
पद लोलुपता से विमुख एलाचार्य अतिवीर जी
त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी शक्ति नगर में भव्य अष्टम चातुर्मास निष्ठापन के पश्चात् मंगल विहार से पूर्व आयोजित अत्यंत शालीन एवं सादगी से परिपूर्ण धर्मसभा में सभी को स्तब्ध कर देने वाली आश्चर्यचकित घोषणा कर डाली। अपने मन के भावों को व्यक्त करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने कहा कि गुरुदेव की समाधी के बाद से आचार्य पद को लेकर दिन-प्रतिदिन नयी नयी चर्चाएं सुनने को मिलती रही हैं। कभी कोई संस्था, कभी कोई समाज, कभी विद्वतजन तो कभी श्रमणवर्ग की ओर से पदोन्नति हेतु निवेदन प्राप्त हो रहे थे। इतना सब होने पर चिन्तन किया कि क्या वाकई ये पदों की होड़ हितकारी है। पद पर रहते हुए यदि समाधि हो जाये तो सीधे नरक की यात्रा करनी पड़ती है। समाधी से पूर्व जब सभी पदों को त्यागना ही है तो हम व्यर्थ ही इस दौड़ में शामिल हो रहे हैं। ये चिंतन करने पर स्वयं को इस दौड़ से अलग करने का मन बना लिया। राजधानी दिल्ली की विभिन्न कालोनियों से पधारे श्रेष्ठीजनों के समक्ष एलाचार्य श्री ने घोषणा की कि वह अब कोई भी पद स्वीकार नहीं करेंगे।

गुरुदेव से एलाचार्य पद मिला था, इसलिए उनकी भावनाओं का सम्मान करते हुए अभी तो इस पद को त्याग नही सकते परन्तु अब आगामी जीवन काल में कोई भी अन्य पद ग्रहण नहीं करेंगे। एलाचार्य श्री ने गुरुदेव को स्मरण करते हुए नम आँखों से कहा कि जो कुछ भी मिलना था वह पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के कर-कमलों द्वारा स्वयं ही मिल गया था, अब उनकी समाधी के पश्चात अन्यत्र किसी संघ से कोई भी पद लेना हमारी विचारधारा का हिस्सा नहीं है। गुरूजी से जो कुछ मिला उसका पूरा सम्मान है, परन्तु उपसंघ या दूसरे संघ के द्वारा पदोन्नति होना निश्चित रूप से अस्वीकारीय है। जब हर तरफ श्रमण वर्ग में पदों को लेकर एक अंधी दौड़ देखने को मिल रही है ऐसे वातावरण में स्वयं को इस दौड़ से भिन्न कर लेना निश्चित रूप से एक सराहनीय पहल है। गृहस्थ अवस्था से ही पूज्य श्री हर असम्भव कार्य को सहजता से कर गुजरते हैं। दीक्षा जयंती, जन्म जयंती, चातुर्मास स्थापना एवं निष्ठापन समारोह के विराट आयोजन को त्यागने के पश्चात् एलाचार्य श्री ने भविष्य में पदों को लेकर हर सम्भावना पर एक विराम लगा दिया है। ऐसे में समाज की दृष्टि में एलाचार्य श्री के प्रति कृतज्ञता तथा श्रद्धा अवश्य ही बढ़ी है।

भविष्य में नहीं करेंगे चातुर्मास स्थापना व निष्ठापन पर कोई समारोह

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज की भावनानुसार तथा श्री जति जी महाराज के आशीर्वाद से परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी शक्ति नगर में भव्य अष्टम चातुर्मास 2013 ऐतिहासिक रूप से भारी धर्मप्रभावना के साथ सानन्द संपन्न हुआ। भव्य अष्टम चातुर्मास कलश निष्ठापन एवं पिच्छी परिवर्तन समारोह का विराट आयोजन रविवार, दिनांक 24 नवम्बर 2013 को प्रातः 10.00 बजे से शक्ति नगर स्थित तिकोना पार्क में निर्मित विशाल पाण्डाल में किया गया। एलाचार्य श्री द्वारा विशेष निमंत्रण पर कैलाश नगर से विहार कर परम पूज्य मुनि श्री 108 शिव सागर जी महाराज का मंगल आगमन शक्ति नगर में हुआ तथा पूज्य श्री ने समारोह में पधारकर एलाचार्य श्री से मिलन किया एवं अपना सान्निधय प्रदान किया।
विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने चातुर्मास के महात्मय पर प्रकाश डाला तथा जिनागम में उल्लेखित चातुर्मास की व्याख्या के विपरीत वर्त्तमान में चल रही एक अंधी दौड़ पर गहन चिंता व्यक्त की। एलाचार्य श्री ने कहा कि वर्त्तमान में चातुर्मास में ज्ञान के आदान-प्रदान का विषय तो पूर्ण रूप से गौण होता जा रहा है तथा प्रदर्शन की बहुलता होती जा रही है। प्रभावना के नाम पर अनर्गल अपव्यय तथा आडम्बरों से ग्रसित चातुर्मास किसी के भी हित में नहीं है। चातुर्मास काल श्रावक तथा साधु के लिए आत्म-चिंतन तथा अंतरंग में उतरने का समय होता है परन्तु आज केवल पैसों का बोलबाला नजर आता है। दर्शन को भुलाकर केवल प्रदर्शन के माहौल को रोकने हेतु एलाचार्य श्री ने विद्वत वर्ग एवं समस्त समाज के समक्ष घोषणा की कि वह आज से जीवन पर्यन्त चातुर्मास स्थापना एवं चातुर्मास निष्ठापन निमित्त कोई भी समारोह का आयोजन नहीं करेंगे।

भविष्य में स्थापना एवं निष्ठापन सम्बन्धी समस्त मांगलिक क्रियाएँ एवं मंत्रोच्चार विधि विधान पूर्वक चातुर्मास स्थल पर संपन्न होंगी तथा कोई भी विराट आयोजन नहीं होगा। एलाचार्य श्री ने आगे कहा कि मैं शक्ति नगर का उपकार कभी नहीं भुला पाउँगा जहाँ मेरे चिंतन एवं दृष्टिकोण को एक नयी दिशा मिली। भौतिकता की चकाचौंध में तो बहुत नहा लिए परन्तु अब सादगी की ओर बढ़कर इस यात्रा का आनंद भी लेना है। अगले वर्ष से चातुर्मास स्थल की कोई पूर्व घोषणा नहीं होगी तथा आषाढ़ माह की अष्टाह्निका पर्व के दौरान जिस भी नगर में होंगे उसके आस पास अनुकूलता देखकर चातुर्मास हेतु रुक जायेंगे। एलाचार्य श्री की इस घोषणा ने उपस्थित जनसमुदाय को स्तब्ध कर दिया।

दिल्ली में ऐतिहासिक रूप से संपन्न हुई राष्ट्रीय विद्वत संगोष्टी
एलाचार्य श्री का जिनवाणी तथा विद्वानों के प्रति असीम वात्सल्य है - शास्त्री परिषद्

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य गुरुवर आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के शिष्य परम पूज्य एलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य एवं निर्देशन में राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी शक्ति नगर में प्रथम बार राष्ट्रीय विद्वत संगोष्टी का अत्यंत गूढ़ एवं मार्मिक त्रिदिवसीय विशाल आयोजन दिनांक 23 से 25 अगस्त 2013 तक श्री मन्दिर जी में अभूतपूर्व प्रभावना के साथ संपन्न हुआ। श्री दिगम्बर जैन सभा (रजि.), शक्ति नगर द्वारा अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् के तत्वावधान में तथा डॉ. श्रेयांस कुमार जैन, बडौत (अध्यक्ष, शास्त्री परिषद्) के संयोजन में राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित विद्वत संगोष्टी में ग्रंथराज श्री पुरुषार्थ सिद्धयुपाय में उल्लेखित श्रावकाचार के विभिन्न प्रसंगों पर जैन समाज के लगभग 40 मूर्धन्य विद्वानों द्वारा प्रकाश डाला गया। इस संगोष्टी की विशेषता रही कि यहाँ श्रावकाचार के प्रत्येक नियम अथवा गुण को एलाचार्य श्री के निर्देश से पूर्ण वैज्ञानिक तथा तर्क सम्मत तरीके से समझाया गया जिससे उपस्थित जनसमुदाय को समझने में आसानी हुई। प्रतिदिन प्रातः काल तथा दोपहर में आयोजित द्विसत्रिय गोष्टी में शक्ति नगर एवं निकटवर्ती नगरों से भारी संख्या में ज्ञान पिपासु सम्मिलित हुए तथा अपने ज्ञानचक्षुओं को उच्च कोटि के विद्वानों के ज्ञान से संतप्त किया। 

 
रविवार, दिनांक 25 अगस्त 2013 को समापन सत्र के अवसर पर विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य एलाचार्य श्री ने समाज के बीच विद्वानों की भूमिका तथा प्रतिष्ठा पर प्रकाश डाला। एलाचार्य श्री ने बताया कि किस प्रकार प्राचीन समय में समाज का हर वर्ग विद्वानों का आदर-सत्कार करता था तथा किस प्रकार विद्वत वर्ग भी अपनी मर्यादा को बनाये रखता था। एलाचार्य श्री ने सकल समाज तथा विद्वत वर्ग से आह्वान किया कि आज वर्तमान समय में भी हम सभी को श्री जिनवाणी माँ के सपूतों (विद्वानों) की गरिमा तथा प्रतिष्ठा को बनाये रखना है। एलाचार्य श्री ने जीवन में श्रावकाचार के नियमों की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पूर्वाचार्यों ने बड़ी सूझबूझ तथा दूरदर्शिता के साथ श्रावकों के लिए धर्म पालन हेतु नियमों की रचना की। जिस काल तथा स्थान पर जिस नियम की अति आवश्यकता आचार्यों ने महसूस की, उन्हें श्रावकाचार में सम्मिलित किया गया। 
एलाचार्य श्री ने बताया कि शक्ति नगर समाज के अत्यंत निर्मल परिणाम है जिसने इस गोष्टी के आयोजन को एक दम से सहर्ष स्वीकृति प्रदान की तथा सभी व्यवस्थाओं को गरिमापूर्ण तरीके से संचालित किया। अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्री परिषद् तथा अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन विद्वत परिषद् से पधारे मूर्धन्य विद्वानों ने एकमत होकर इस संगोष्टी को एतिहासिक बताया तथा एक स्वर में कहा कि आज तक कही भी इस चिंतन तथा इस रूप में कोई भी संगोष्टी संपन्न नहीं हुई। श्री दिगम्बर जैन सभा (रजि.), शक्ति नगर द्वारा आमंत्रित सभी विद्वानों का अत्यंत भव्य रूप से गरिमामयी सम्मान किया गया। कार्यकारिणी के समस्त पदाधिकारीगण तथा सदस्यों ने उपस्थित विद्वानों एवं सुधीजनों का आभार प्रगट किया तथा इस गोष्टी के सफल आयोजन के लिए समस्त समाज का धन्यवाद ज्ञापित किया। सभी विद्वानों ने एलाचार्य श्री के चरणों में अपनी भावांजलि अर्पित करते हुए कहा कि श्री द्वादशांग जिनवाणी माँ तथा विद्वत वर्ग के प्रति ऐसा वात्सल्य कम ही साधुओं में देखने को मिलता है। यह हमारा सौभाग्य रहा कि हम आज यहाँ एलाचार्य श्री की चरण-सन्निधि में बैठे हुए उनका मार्ग-निर्देशन प्राप्त कर रहे हैं। 

श्री सम्मेद शिखरजी पर बिखरी अनुपम छठा

त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज तथा श्री यति (जती) जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से तथा परम पूज्य ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज की मंगलमयी प्रेरणा, कुशल निर्देशन एवं आशीर्वाद से राजधानी दिल्ली से लगभग 1300 सुश्रवाकों को जैन समाज के मुकुट-सम तीर्थाधिराज शाश्वत तीर्थ श्री सम्मेद शिखर जी की पूर्णतया निःशुल्क धार्मिक यात्रा का ऐतिहासिक एवं अविस्मरणिय आयोजन शनिवार, 9 फरवरी 2013 से गुरुवार, 14 फरवरी 2013 तक श्री सम्मेद शिखर तीर्थ वंदना आयोजन समिति (दिल्ली) के तत्वावधान में संपन्न हुआ। यात्रा के प्रथम चरण में दिनांक 20 जनवरी 2013 को मंगलाशीष समारोह का आयोजन जैन बाल आश्रम, दरियागंज में किया गया था जिसमें सभी यात्रियों को यात्रा हेतु समस्त दिशा-निर्देश एवं क्षेत्र पर प्रयुक्त होने वाली सभी वस्तु-सामग्री किट के रूप में प्रदान की गयी थी। ऐलाचार्य श्री के निर्देशन में तैयार की गयी इस किट को सभी वर्गों के महानुभावों ने तथा श्रमण वर्ग ने भी खूब सरहाया। यात्रा की तिथि नज़दीक आते-आते समस्त समाज में इस अदभुत यात्रा पर जाने के लिए भारी उत्साह भर गया था। जो महानुभाव किसी कारणवश पहले अपनी सीट बुक नहीं करवा पाए थे, वह भी अब इस यात्रा में सम्मिलित होने के लिए आतुर थे।

देखते ही देखते 9 फरवरी का वह दिन भी आ गया जब लगभग 1300 यात्रियों ने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से अपनी यात्रा की शुरुआत करनी थी। सभी यात्री तथा उनके परिवारजन स्टेशन पर एकत्रित थे। आयोजन समिति द्वारा यात्रियों की विदाई हेतु जबरदस्त तैय्यारियाँ देखकर उपस्थित जनसमुदाय भावविभोर हो उठा। पूरे प्लेटफार्म पर जगह-जगह स्वागत पट्टिका, जैन ध्वज तथा विशेष सुगन्धित छिडकाव ने समस्त वातावरण को धर्ममय बना दिया। आयोजन समिति द्वारा आगंतुक सभी महानुभावों का तिलक एवं चमकीली लगा कर स्वागत किया गया तथा वहां उपस्थित समस्त महानुभावों को फल, काजू कतली आदि वितरित किये गए। बैंड तथा नफीरी-ताशा की मधुर धुनों ने सभी यात्रियों को मंत्र-मुग्ध कर दिया तथा सभी के कदम थिरके बिना न रह सके। गुब्बारों तथा मालाओं से सुसज्जित श्री सम्मेद शिखर एक्सप्रेस के रूप में रात्रि 9.45 बजे जैसे ही पुरषोत्तम एक्सप्रेस प्लेटफार्म पर पहुंची तो जयकारों से सारा रेलवे स्टेशन गुंजायमान हो गया। स्टेशन पर उपस्थित जैनेत्तर समाज भी इस माहोल से अछूती न रही तथा सभी एकटुक इस प्रभावशाली दृश्य को निहार रहे थे। रात्रि 10.25 पर श्री नेम चंद जैन परिवार (अशोक विहार) ने ट्रेन को हरी झंडी दिखाई तथा ट्रेन का साईरन बजते ही यात्रियों का उत्साह दुगना हो गया। यात्रियों को छोड़ने आये उनके परिवारजन अपनी अश्रुधाराओं को रोक न पाए तथा सभी ने ख़ुशी के आंसुओं के साथ ट्रेन को विदा किया। रेलवे अधिकारीयों का कहना है कि स्टेशन पर ऐसा माहोल न आज तक कभी बना था और संभवतः आगे भी कभी न बन पाए। ट्रेन के चलते ही सभी यात्रियों ने भगवन पार्श्वनाथ स्वामी, आचार्य श्री सन्मति सागर जी तथा ऐलाचार्य श्री अतिवीर जी महाराज के जयकारों से सभी का उत्साहवर्धन किया। सभी डिब्बों में उपस्थित संयोजक मंडल ने यात्रियों को असुविधाओं से बचाने हेतु उत्तमस्थ प्रयास किये। यात्रियों की सीट सुनिश्चित करने के पश्चात् आयोजन समिति द्वारा दिए गए भोजन एवं नाश्ते के डिब्बों को संयोजकों ने सभी यात्रियों को प्रदान किये।

अगले दिन 10 फरवरी की प्रथम बेला में धार्मिक वातावरण के साथ दिन की शुरुआत हुई तथा सभी ने नवकार मंत्र का ध्यान किया। भजनों की धुनों के साथ तथा विशेष उत्सव के माहोल के बीच सभी यात्रियों ने ट्रेन का सफ़र तय किया। बैंड की धुनों के साथ रात्रि 8 बजे जब ट्रेन पारसनाथ स्टेशन पर पहुंची तो प्लेटफार्म पर उपस्थित संयोजकों ने सभी यात्रियों का पुनः तिलक लगाकर भव्य स्वागत किया। प्लेटफार्म पर उतर कर सभी यात्रियों के उत्साह का ठिकाना न था तथा सभी ने बैंड की धुन पर नृत्य कर अपने उत्साह का प्रदर्शन किया। आयोजन समिति द्वारा व्यवस्थाएं बनाते हुए सभी यात्रियों को बस में बिठाया गया तथा पुलिस की कड़ी सुरक्षा के बीच सभी को मधुबन ले जाया गया। तेरापंथी कोठी पहुचने पर सभी यात्रियों को केसरयुक्त दूध तथा मेवे, नमकीन आदि अन्य सामग्री प्रदान की गयी। आयोजन समिति द्वारा सभी यात्रियों के लिए क्षेत्र पर ठहरने के लिए तेरापंथी कोठी तथा बंगले में उत्तम व्यवस्थाएं की गयी थी।

दिनांक 11 फरवरी को श्री पुष्पदंत जिनालय में ब्र. राज किंग जैन शास्त्री (अशोक नगर, म.प्र.) के विधानाचार्यत्व में सभी यात्रियों द्वारा श्री सम्मेद शिखर विधान रचाया गया। सभी के पुण्योदय से इस विधान में परम पूज्य आचार्य श्री 108 बाहुबली जी महाराज की सुशिष्या आर्यिका श्री 105 धर्मेश्वरी माताजी ससंघ का पावन सान्निध्य एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ। इस विधान में सौधर्म इन्द्र बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ श्री सुभाष जैन 'भगत जी' (कैलाश नगर) को तथा मुख्य पात्रों के रूप में श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री सुखमाल जैन (त्रिनगर), श्री मुकेश जैन (पीतमपुरा), श्री मदनलाल अंकुर जैन (सूर्य नगर) तथा श्री योगेश जैन (नजफगढ़) सम्मिलित हुए। ट्रेन में यात्रा की थकान के बावजूद भी सभी यात्री इस विधान में सम्मिलित हुए। अभिषेक, शांतिधारा एवं नित्य नियम पूजन के पश्चात् विधान का विधिवत शुभारम्भ हुआ। तेरापंथी कोठी स्थित श्री 1008 पुष्पदंत जिनालय का विशाल हॉल भी इस दिन छोटा लग रहा था। सभी महानुभाव प्रभु की भक्ति में डूबे हुए थे तथा राज किंग भैया की मधुर धुनों पर भक्ति-नृत्य कर झूम रहे थे। आयोजन समिति द्वारा विधान में सम्मिलित सभी महानुभावों को विशेष रूप से मंत्रित रतन प्रदान किये गए। तेरापंथी कोठी के पुजारी ने बताया कि मेरे 27 वर्ष के सेवा काल में यह प्रथम विधान यहाँ संपन्न हो रहा है जिसमें इतना भारी हुजूम सम्मिलित है तथा इतनी भव्यता के साथ संपन्न हो रहा है। विधान में सभी को इतना आनंद आ रहा था कि सुबह के बैठे-बैठे भी सभी व्यक्ति दोपहर के 2 बजे भी विधान को कुछ देर और जारी रखने का निवेदन कर रहे थे। विधान के पश्चात् सभी यात्रियों के लिए उत्तम भोजन व्यवस्था की गयी थी। दोपहर में सभी ने तलहटी में विराजमान मंदिरों के दर्शन किये तथा सायं काल में तेरापंथी कोठी में श्री जी की भव्य महारती की एवं भजन संध्या में भरपूर भक्ति कर अपने उत्साह का परचम लहराया। सायं काल के भोजन में आयोजन समिति ने सभी यात्रियों के लिए दिल्ली की चाट-पकोड़ी की विशेष व्यवस्था रखी गयी थी। आयोजन समिति द्वारा सभी यात्रियों को अगले दिन वंदना पर जाने हेतु उचित दिशा-निर्देश प्रदान किये गए तथा सभी को दर्शनों के पश्चात् ग्रहण हेतु नाश्ते का एक डिब्बा दिया गया।

दिनांक 12 फरवरी को प्रातः 3 बजे तेरापंथी कोठी से लगभग 1300 यात्रियों ने परम पावन तथा पवित्र पर्वत श्री सम्मेद शिखर जी की भावपूर्ण वंदना प्रारंभ की। आयोजन समिति द्वारा प्रदत्त विशेष टोपी तथा आई-कार्ड लगाये सभी यात्री एक साथ पर्वत पर चढ़े जा रहे थे। यह अदभुत नजारा अवश्य ही दर्शनीय था। समस्त पर्वत पर आयोजन समिति द्वारा यात्रियों का अभिनन्दन करती पट्टियाँ तथा फ्लेक्स ने माहोल को अत्यंत भव्य बनाया हुआ था। सूर्य की प्रथम किरण के साथ यात्रियों ने चोपड़ा कुण्ड में विराजमान परम वन्दनीय श्री पार्श्वनाथ प्रभु के दर्शन किये। प्रभु के जयकारों के साथ सभी यात्री आगे बढ़ते गए तथा क्रमशः सभी टोंकों की वंदना करते हुए श्री स्वर्णभद्र कूट पर पारस प्रभु के चरणों में जा पहुंचे। चरण वंदना कर सभी ने स्वयं को अत्यंत भाग्यशाली महसूस किया तथा महान पुण्यार्जन किया। देश के अलग-अलग कोने से आये दर्शनार्थियों ने दिल्ली से पहुंचे इस संघ की व्यवस्था तथा एकरूपता को देखकर अत्यंत आनंद का अनुभव किया तथा सभी के मन में एक जिज्ञासा थी कि इतना व्यवस्थित संघ किनके निर्देशन में यहाँ आया है। 24 तीर्थंकरों की चरण वंदना कर सभी यात्री वापिस मधुबन की ओर चल पड़े। शाम होते-होते सभी दर्शनार्थी धीरे-धीरे तेरापंथी कोठी पहुँच गए जहाँ आयोजन समिति ने सभी का अभिनन्दन किया। सायं काल के भोजन के पश्चात् श्री पुष्पदंत जिनालय में ब्र. राज किंग भैया के निर्देशन में सभी ने महारती की तथा गुरुभक्ति की अनूठी मिसाल स्थापित की। क्षेत्र पर अंतिम रात्रि के अवसर पर आयोजन समिति ने सभी यात्रियों का हार्दिक आभार प्रगट किया। इस यात्रा में जिन भी लोगो का सहयोग प्राप्त हुआ, आयोजन समिति द्वारा सभी का सम्मान किया गया। तेरापंथी कोठी के समस्त पदाधिकारियों का तथा समस्त कार्यकर्ताओं का विशेष सम्मान किया गया। यात्रा के इस अंतिम सभा में उपस्थित सभी महानुभावों की आँखें नम हो गयी तथा सभी ने आयोजन समिति द्वारा किये गए भवितव्य व्यवस्थाओं हेतु धन्यवाद ज्ञापित किया।   

दिनांक 13 फरवरी का वह दिन भी आ गया जब एक ऐतिहासिक यात्रा के अनुभव के साथ सभी यात्री दिल्ली की ओर प्रस्थान करने वाले थे। प्रातः काल श्री जिनेन्द्र प्रभु के दर्शनों के पश्चात् सभी यात्रीगण तेरापंथी कोठी में निर्मित पांडाल में एकत्रित हुए। आयोजन समिति द्वारा सभी यात्रियों को ट्रेन में प्रयुक्त होने वाली भोजन सामग्री प्रदान की गयी। सभी यात्रियों का चन्दन का टिका लगाकर अभिनन्दन किया गया तथा सबने आपस में एक परिवार की तरह उत्साहपूर्वक होली खेलते हुए क्षेत्र से विदाई ली। व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करते हुए संयोजक मंडल ने सभी यात्रियों को बसों में बिठाकर पारसनाथ स्टेशन की ओर रवाना किया। पारस प्रभु तथा गुरुवर के जयकारों के साथ समस्त यात्री पारसनाथ स्टेशन पहुंचे जहाँ सबने सम्पूर्ण स्टेशन को गुंजायमान कर दिया। दोपहर 12.40 पर जैसे ही पूर्वा एक्सप्रेस पारसनाथ स्टेशन पर पहुंची तो सभी यात्रीगण भारी उत्साह से सराबोर होकर भक्ति के आनंद में डूब गए। ऐसी अविस्मर्णीय यात्रा के अंतिम पलों का एक ओर सबके दिल में दुःख था तो दूसरी ओर दिल्ली पहुँच कर पूज्य गुरुवर ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के दर्शनों की ललक भी थी। ट्रेन के अन्दर सभी यात्रियों ने नवकार मंत्र तथा अध्यात्मिक भजनों के साथ वातावरण को पवित्र बनाया हुआ था। अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ते हुए दिनांक 14 फ़रवरी को प्रातः 8 बजे ट्रेन नई दिल्ली रेलवे स्टेशन आ पहुंची जहाँ इस अभूतपूर्व यात्रा का निर्विघ्न समापन हुआ। श्री दिगम्बर जैन नया मंदिर, धर्मपुरा (चांदनी चौक) में विराजमान इस यात्रा के प्रेरणा-स्रोत परम पूज्य गुरुवर ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के पावन दर्शनों हेतु भारी संख्या में लगभग सभी यात्रीगण पहुंचे तथा ऐलाचार्य श्री का मंगल आशीर्वाद प्राप्त किया। ऐलाचार्य श्री के दर्शन कर सभी भावविभोर हो उठे।   

श्री सम्मेद शिखर जी संरक्षण वर्ष के सुअवसर पर आयोजित दिल्ली महानगर में दसलक्षण व्रत की पवित्र व्रत संयम धारणा को प्रोत्साहित करने हेतु ऐलाचार्य श्री की प्रेरणा से संयोजित श्री सम्मेद शिखर जी की निःशुल्क एवं ऐतिहासिक यात्रा लगभग 5 माह की कड़ी मेहनत के पश्चात् निर्विघ्न रूप से सानंद संपन्न हुई तथा इसमें सभी संयोजकों के साथ-साथ समस्त यात्रियों का भी भारी सहयोग प्राप्त हुआ। श्री सम्मेद शिखर जी जैन समाज का अत्यंत पवित्र एवं पावन तीर्थ है जहाँ से 20 तीर्थंकरों तथा कोड़ा-कोडी मुनिराजों ने मोक्ष प्राप्त किया। यह तीर्थ जैन समाज की कीर्ति का यशोगान युगों-युगों तक करता रहेगा। वर्तमान में इस तीर्थ की अस्मिता एवं पवित्रता को बचाने के उद्देश्य से ऐलाचार्य श्री ने इस यात्रा का विचार समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जिसे सभी ने सहर्ष स्वीकार किया। जैन समाज की शीर्षस्थ संस्थाओं ने तथा समाज के गणमान्य महानुभावों ने भी इस यात्रा को भरपूर समर्थन प्रदान किया। ऐलाचार्य श्री की अनुपम एवं विलक्षण सोच का ही यह परिणाम है जो इस यात्रा के माध्यम से भारी धर्मप्रभावना संपन्न हुई। इस यात्रा को जैन समाज के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों से अंकित करवाने का श्रेय श्री सम्मेद शिखर तीर्थ वंदना आयोजन समिति के समस्त संयोजकों को, सभी यात्रियों को तथा प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़े सभी महानुभावों को जाता है। यात्रा के सफल आयोजन में सबसे महत्वूर्ण योगदान हमारे मुख्य संयोजक श्री मुकेश जैन (अशोक विहार) का था जिन्होंने बिना रुके इस आयोजन को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा दिया। आयोजन समिति के मुख्य संयोजक श्री माम चंद जैन (बैंक एन्क्लेव), श्री राकेश जैन (अशोक विहार), श्री पंकज जैन 'नीटू' (कैलाश नगर) का अभूतपूर्व योगदान इस आयोजन को प्राप्त हुआ।   


सभी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करते हुए हमारे संयोजकगण श्री राजेश जैन 'भोला' (अशोक विहार), श्री सुनील जैन (ऋषभ विहार), श्री निकुंज जैन (प्रीत विहार), श्री अमित जैन (सूरजमल विहार), श्री सुखमाल चंद जैन (बैंक एन्क्लेव), श्री आनंद स्वरुप जैन (न्यू फ्रेंड्स कॉलोनी), श्री प्रवीण कुमार जैन (नजफगढ़), श्री राकेश जैन (राजेंद्र नगर), श्री सुभाष जैन 'भगत जी' (कैलाश नगर), श्री अशोक कुमार नरेन्द्र कुमार जैन (कैलाश नगर), श्री सुखपाल सिंह प्रवीण कुमार जैन (कैलाश नगर), श्री चमन लाल जैन (कैलाश नगर), श्री दिगम्बर जैन पंचायत (त्रिनगर) एवं श्री दिगंबर जैन पंचायती मंदिर (बैंक एन्क्लेव) के पदाधिकारियों ने इस यात्रा को ऐतिहासिक रूप प्रदान किया। सभी यात्रियों को उत्तम से उत्तम व्यवस्था प्रदान करते हुए तथा किसी भी प्रतिकूलता की स्थिति में हर समय हर संभव मदद प्रदान करते हुए जैन यूथ काउंसिल (दिल्ली प्रदेश) के सभी सदस्यों ने जी-जान से अपनी सेवाएं प्रदान की। जैन यूथ काउंसिल के साथ कंधे से कन्धा मिलाकर श्री चंद्रप्रभु वीर सेवा मंडल (गौतमपुरी), श्री जैन सेवा संघ (कैलाश नगर), श्री आदिनाथ युवा मंडल (त्रिनगर), श्री पार्श्वनाथ यूथ क्लब (सूरजमल विहार) के सभी कार्यकर्ताओं ने सबका मन मोह लिया। यात्रा के अंतिम क्षणों में सभी यात्रियों ने आयोजन समिति से एक स्वर में ऐसी ऐतिहासिक यात्रा को हर वर्ष आयोजित करने की मांग की। सभी यात्रियों ने प्राप्त सुविधाओं की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा ऐलाचार्य श्री की इस विलक्षण सोच को प्रणाम किया। इस यात्रा के प्रत्येक पल को बिना किसी थकावट के श्री विपिन जैन 'प्रिय'  ने पारस चेनल के माध्यम से रिकॉर्ड किया तथा जल्द ही सम्पूर्ण प्रसारण देश-विदेश में दिखाया जायेगा। पारस चेनल के अतिरिक्त महावीरा चेनल ने भी इस यात्रा को रिकॉर्ड किया। आयोजन समिति द्वारा प्रतिदिन सुबह का नाश्ता, दोपहर एवं शाम का भोजन एवं रात्रि में दूध तथा मेवे आदि की अति-उत्तम व्यवस्था की गयी थी।

जंतर-मंतर पर गूंजा अहिंसा का संदेश

दिनांक 1 जनवरी 2013 को गुजरात के जूनागढ़ स्थित जैन समाज के प्रमुख तीर्थ श्री गिरनार जी सिद्धक्षेत्र पर कुछ असामाजिक तत्वों द्वारा परम पूज्य मुनि श्री 108 प्रबल सागर जी महाराज पर चाकुओं से जानलेवा हमला किये जाने के प्रति अपना रोष प्रगट करने हेतु श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन युवा महासभा के तत्वावधान में विशाल धरना प्रदर्शन एवं रैली का आयोजन दिनांक 5 जनवरी 2013 को प्रातः 10 बजे से राजधानी दिल्ली के मुख्य स्थान जंतर-मंतर पर किया गया। इस धरना प्रदर्शन में जैन समाज की शीर्षस्थ संस्थाओं के पदाधिकारीगण, समाज के गणमान्य महानुभाव तथा सामाजिक नेताओं के साथ दिल्ली की समस्त कालोनियों से एवं गुडगाँव, फरीदाबाद, गाज़ियाबाद आदि निकटवर्ती क्षेत्रों से लगभग 3 हजार मुनि-भक्तों ने सम्मिलित होकर जैन संत पर हुए हमले के प्रति अपना विरोध दर्ज करवाया। समस्त समाज के मन में इस घटना के प्रति भारी रोष व्याप्त था तथा सभी एक स्वर में सरकार से धर्म एवं मुनियों की रक्षा की मांग कर रहे थे। सभा के मध्यस्थ सिद्धांत चक्रवर्ती परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्यानंद जी मुनिराज का मंगल सन्देश भी प्राप्त हुआ तथा गुजरात के गृह सचिव का पत्र भी संस्था को प्राप्त हुआ।


श्री निर्मल कुमार जैन सेठी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा), श्री चक्रेश जैन (महामंत्री, श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन तीर्थ क्षेत्र कमेटी तथा अध्यक्ष, जैन समाज दिल्ली), श्री गोपेन्द्र जैन (अध्यक्ष, श्री दिगम्बर जैन महासमिति केन्द्रांचल), श्री अशोक भूषण जैन (महामंत्री, श्री दिगम्बर जैन महासमिति केन्द्रांचल), श्री राकेश जैन (श्री दिगम्बर जैन महासमिति केन्द्रांचल), श्री नानक चन्द जैन (अध्यक्ष, अशोक विहार-2), श्री स्वदेश कुमार जैन (महासचिव, श्री दिगम्बर जैन महासभा रोहिणी-पीतमपुरा), श्री मुकेश जैन (श्री दिगम्बर जैन महासभा रोहिणी-पीतमपुरा), श्री कैलाश जैन बडजात्या (श्री दिगम्बर जैन महासभा रोहिणी-पीतमपुरा), श्री जे. के. जैन (अध्यक्ष, जैन मिलन दिल्ली), श्री संजय जैन (अध्यक्ष, विश्व जैन संगठन), श्री धर्मपाल जैन (अध्यक्ष, तरुण क्रांति मंच दिल्ली), श्री किशोर जैन (शाश्वत भवन शिखरजी), श्री प्रमोद जैन (वर्धमान ग्रुप), श्री स्वदेश भूषण जैन (पंजाब केसरी), श्री हेम चंद जैन (ऋषभ विहार), श्रीमती नीलम जैन (गुडगाँव), श्रीमति राजरानी जैन (स्यादवाद महिला मंडल), श्रीमती अनीता जैन (कैलाश नगर) आदि अनेकों विशिष्ट महानुभावों ने इस घटना की घोर भर्त्सना करते हुए अपना रोष व्यक्त किया।

जंतर-मंतर पर आयोजित इस धरना प्रदर्शन को जैन समाज के विख्यात संत परम पूज्य ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का अत्यंत हितकारी संबोधन प्राप्त हुआ। सूर्य नगर (गाज़ियाबाद, उ.प्र.) से प्रातः विशाल जनसमुदाय के साथ पूज्य ऐलाचार्य श्री भव्य जन-जागरण यात्रा के रूप में जंतर-मंतर पधारे तथा उपस्थित विशाल जनसमुदाय को अपना अहिंसामयी एवं अमृतमयी आगमोक्त संबोधन प्रदान किया। तीर्थंकर भगवंतों, गुरु महाराजों तथा पूज्य मुनि श्री प्रबल सागर जी महाराज के जयकारों के साथ ऐलाचार्य श्री ने अपना उद्बोधन प्रारंभ किया। विशाल जनसमुदाय को संबोधित करते हुए ऐलाचार्य श्री ने कहा कि संतों पर हमला बेहद शर्मनाक एवं निंदनीय है। श्रीमद भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने दिगम्बर जैन साधु की महिमा का वर्णन किया है, सदा मर्यादा का पालन करने वाले मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम चन्द्र ने भी अहिंसा के मार्ग का अनुसरण किया। इसका मतलब है कि गिरनार जी में जो जैन मुनि पर हमला हुआ है वह किसी हिन्दू या सनातन धर्म को मानने वाले व्यक्ति ने नहीं किया। सिख संप्रदाय के श्री गुरु ग्रन्थ साहिब में भी दिगम्बर संतों एवं अहिंसा के महात्मय का वर्णन मिलता है। अर्थात गिरनार जी में दिगम्बर साधु पर हमला करने वाला व्यक्ति सिख भी नहीं हो सकता। कुराण ने भी अन्य जीवों को कष्ट ना पहुँचाने का सन्देश प्रदान किया है, फलस्वरूप इस प्रकार के निंदनीय कृत्य को अंजाम देने वाला व्यक्ति मुस्लमान भी नहीं हो सकता।

दूसरों को मुसीबत से बचाने के लिए आतुर यीशु मसीह ने स्वयं सूली पर लटकना स्वीकार किया, तो फिर ऐसे हमले करने वाला व्यक्ति ईसाई कैसे हो सकता है? जिन धर्मों ने समस्त प्राणियों के प्रति दया एवं करुणा भाव धारने की प्रेरणा दी हो, उस धर्म को मानने वाले कैसी किसी अन्य प्राणी पर हमला कर सकते हैं? इतिहास में दर्ज इन तमाम उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि गिरनार तीर्थ पर दिगम्बर मुनि पर हमला करने वाला व्यक्ति किसी भी संप्रदाय विशेष से सम्बन्ध नहीं रखता। इस प्रकार से धरने करना तथा इन हिंसक नारों को प्रयोग करना जैन सिद्धांतों के विपरीत है और यदि आप सब को यही सब करना है तो पहले अपने नाम के आगे से जैन शब्द हटादो। ऐलाचार्य श्री ने आगे कहा कि यदि आपको मारना ही है तो उस व्यक्ति की दुर्भावना को मारो। यदि आपको पलटना ही है तो उस व्यक्ति के कुसंस्कारों को पलट दो। और यदि आपने जलाना ही है तो अपने भीतर के इस वैमनस्य को जला डालो। जैन दर्शन का प्रमुख सिद्धांत "उत्तम क्षमा" को आज हमने कैसे भुला दिया? कैसे हमने श्री पार्श्वनाथ स्वामी द्वारा कमठ को क्षमा किये जाने के प्रसंग को नज़र-अंदाज़ कर दिया? अहिंसा के पुजारी होकर कैसे हमने एक आत्मा, जिसमें परमात्मा बनने की बराबर शक्ति विद्यमान है, के लिए अत्यंत हिंसक भावों को धारण कर लिया? कोई माने या ना माने परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि मुनिश्री ने दिल से उस व्यक्ति को क्षमा प्रदान कर दी है।

ऐलाचार्य श्री ने आगे कहा कि मुनिश्री पर हुए इस हमले से मुझे भी गहरा दुःख हुआ। 6 नवम्बर 2002 को गृह-त्याग के पश्चात् हमने सबसे पहले शरण मुनिद्वय श्री सौरभ सागर जी एवं श्री प्रबल सागर जी महाराज के चरणों में लखनऊ में ली थी। मुनिश्री सिर्फ आपके ही गुरु नहीं परन्तु गृह-त्याग के पश्चात् यही मेरे सबसे पहले गुरु हैं। इस घटना का अहिंसक रूप से एवं शांतिपूर्वक विरोध करना आवश्यक है। हम सभी को इस प्रकार की विरोध सभाएं अपने स्थानीय मंदिरों में भी करनी चाहिए तथा दिल्ली के बीचों-बीच चांदनी चौक में स्थित श्री दिगम्बर जैन लाल मन्दिर में एक विशाल जन-जागरण सभा का आयोजन करना चाहिए। अत्यंत अहिंसक समाज तथा अत्यंत समृद्ध जैन समाज आज सड़कों पर उतर आया है, यह बेहद अफ़सोस की स्थिति है। आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज के आदेशानुसार ऐलाचार्य श्री ने भारतवर्ष में विराजमान समस्त त्यागी-वृन्द तथा सकल समाज से 26 जनवरी 2013 को एक दिन का सांकेतिक उपवास रखने का आह्वान किया तथा मुनिश्री के जल्द स्वस्थ होने की कामना करते हुए उपस्थित जनसमुदाय को प्रतिदिन एक णमोकर महामंत्र की जाप करने के लिए प्रेरित किया।

अंत में ऐलाचार्य श्री ने कहा कि हमें किसी भी व्यक्ति के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं चाहिए। हम केंद्र सरकार तथा गुजरात सरकार से बस इतना निवेदन करना चाहते हैं कि जिस प्रकार प्राचीन काल में राजा अपने राज्य में साधुओं के आहार-विहार की समुचित व्यवस्थित करता था उसी प्रकार वर्तमान में भी सभी राज्यों के मुख्यमंत्रीगण अपने-अपने राज्यों में दिगम्बर साधुओं के आहार-विहार तथा सुरक्षा आदि के लिए यथा-संभव व्यवस्थाएं करें तथा यह सुनिश्चित करें कि किसी भी साधु को भविष्य में ऐसी किसी यातना का सामना न करना पड़े।

सभा में विद्यमान सभी गणमान्य महानुभावों ने तथा उपस्थित जनसमुदाय ने ऐलाचार्य श्री के आह्वान को स्वीकार किया। जैन समाज की शीर्षस्थ संस्थाओं ने यह निश्चय किया कि जैन समाज का एक प्रतिनिधि मंडल केंद्र एवं गुजरात सरकार से मिलकर इस घटना के प्रति उचित कार्यवाही करने के लिए आग्रह करेगा तथा इस दिशा में निरंतर प्रयासरत रहेगा। ऐलाचार्य श्री ने कहा कि श्रीमान साहू जी के बाद जैन समाज अनाथ हो गया है। आज इसे सँभालने के लिए किसी एक नेता का ठोस कन्धा उपलब्ध नहीं है जिसके कारण सभी यत्र-तत्र भिखरे हुए हैं। ऐलाचार्य श्री ने निर्देश दिया कि अब वक़्त आ गया है जब हमें अपनी समाज के लिए एक काबिल तथा ज़िम्मेदार नेता का चयन करना होगा जिसके दिशा-निर्देश में चारों संप्रदाय भली-भाँती विकसित हो सके। 

जैन इतिहास के स्वर्णिम पलों का साक्षी बना त्रिनगर समाज


चातुर्मास काल नज़दीक आते ही राजधानी दिल्ली की धर्मनगरी त्रिनगर के जैन समाज में एक बार फिर दिगम्बर जैन सन्त का चातुर्मास सम्पन्न करवाने की उत्सुकता ने जन्म लिया| धुंधली धुंधली-सी चर्चाएं, बार-बार पलटती मानसिकताएं तथा ऐतिहासिक कार्य कर गुजरने के जोश से भरपूर नवगठित कार्यकारिणी कमिटी ने इस वर्ष त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के परम प्रिय एवं अत्यन्त प्रभावशाली शिष्य परम पूज्य ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का चातुर्मास स्थापित करवाने का मन बनाया| अपनी इच्छा का इज़हार करते हुए श्री दिगम्बर जैन पंचायत (पंजी.) त्रिनगर के समस्त पदाधिकारीगण एवं सदस्यों ने ऐलाचार्य श्री के चरणों में श्रीफल अर्पित करते हुए विनती की| ऐलाचार्य श्री के आदेशानुसार त्रिनगर जैन समाज ने पूज्य गुरुवर आचार्य श्री विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के चरणों में अपनी भावनाएं व्यक्ति कीं| 05 जून 2011 को तालकटोरा स्टेडियम में श्रुत पंचमी महामहोत्सव के परम पुनीत अवसर पर दिल्ली की विभ्भिन कालोनियों तथा निकटवर्ती क्षेत्रों से ऐलाचार्य श्री के चातुर्मास हेतु श्रीफल अर्पित करने के लिए सभी महानुभाव वहाँ उपस्थित थे| चातुर्मास प्राप्त करने की होड़ में शामिल सभी महानुभावों की दिल की धडकनों को आचार्य श्री के मुखारबिंद से बस चातुर्मास घोषणा का इंतज़ार था| जैसे ही आचार्य श्री ने त्रिनगर जैन समाज को ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का षष्टम चातुर्मास प्रदान किया वैसे ही सारा स्टेडियम जयकारों तथा हर्षोल्लास के माहोल से गद-गद हो उठा| घोषणा के पश्चात् त्रिनगर जैन समाज की ख़ुशी का ठिकाना न रहा तथा सभी आबाल-वृद्ध इस चातुर्मास को ऐतिहासिक रूप प्रदान करने की तैय्यारियों में जुट गए| 

दिनांक 06 जुलाई 2011 को पूज्य ऐलाचार्य श्री ने अशोक विहार फेस-1 जैन मन्दिर से विहार कर चातुर्मास हेतु त्रिनगर में हजारों धर्मानुरागी बन्धुओं के साथ भव्य प्रवेश किया| प्रवेश के साथ ही ऐलाचार्य श्री के सान्निध्य में त्रिनगर समाज में उत्सवों तथा आयोजनों की श्रृंखला ने जन्म ले लिया| दिनांक 7 जुलाई को श्री दिगम्बर जैन मन्दिर त्रिनगर में मूलनायक भगवान श्री 1008 नेमिनाथ स्वामी का निर्वाण लाडू चढ़ाया गया तथा 8 जुलाई को ऐलाचार्य श्री ने केशलोंच किया| श्री जैन स्थानक, त्रिनगर में चातुर्मास हेतु श्रमण संघीय उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा. आदि ठाणा ने 9 जुलाई 2011 को मंगल प्रवेश किया तथा इस अवसर पर पूज्य ऐलाचार्य श्री ने सभी श्वेताम्बर संतों की मंगल अगवानी की| इस अवसर पर समस्त जैन समाज में विशेष प्रभावना वितरित की गई| ऐलाचार्य श्री द्वारा पूरे चातुर्मास काल में प्रतिदिन प्रातः काल सारगर्भित मंगल प्रवचन तथा दोपहर में श्री रत्नकरंडक श्रावकाचार पर निष्पक्ष तथा सरल भाषा में स्वाध्याय से भारी प्रभावना हुई तथा ज्ञान-चर्चा का विषय निर्मित हुआ| केशवपुरम की सुन्दर एवं मनोरम वाटिका में जैनेत्तर समाज के विशेष अनुग्रह पर ऐलाचार्य श्री द्वारा दो बार सर्वधर्म प्रवचन हुए जिसे सुनकर सभी के ज्ञान-चक्षु तृप्त हो गए| चातुर्मास काल में समय-समय पर श्वेताम्बर स्थानकवासी सन्त उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा., श्री उपेन्द्र मुनि जी म.सा. तथा क्षुल्लक श्री 105 विरंजन सागर जी महाराज आदि त्यागियों से मंगल मिलन एवं धार्मिक मंत्रणाएँ सम्पन्न हुई| ऐलाचार्य श्री द्वारा प्रतिदिन प्रातः काल में त्रिनगर के निकटवर्ती क्षेत्रों में स्थित जैन मन्दिरों की वंदना हेतु विहार हुआ जिससे सारे क्षेत्र में भारी धर्मप्रभावना हुई| चातुर्मास के अनन्तर जैन समाज के विद्वतजन श्री श्रेयांस कुमार जैन, श्री जय कुमार जैन 'निशांत', श्री विनोद जैन, श्री सनत जैन, श्री निहाल चन्द जैन आदि तथा जैन समाज के वरिष्ट गणमान्य व्यक्ति श्री निर्मल कुमार जैन सेठी, श्री आर. के. जैन आदि महानुभावों ने ऐलाचार्य श्री के दर्शन कर विभ्भिन विषयों पर चर्चा की| चातुर्मास के अनन्तर सम्पन्न हुए विशेष आयोजनों ने इस चातुर्मास को अनुपन रूप प्रदान करते हुए जैन धर्म की पताका को मीलों दूर तक फ़हराया|

भव्य षष्टम चातुर्मास कलश स्थापना समारोह 
रविवार, दिनांक 10 जुलाई 2011 को लगभग पाँच हजार धर्मानुरागी बन्धुओं की उपस्थिति में ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज ने षष्टम चातुर्मास कलश स्थापना की| यह आयोजन वी.वी.आई.पी. पार्क, केशव पुरम में सम्पन्न हुआ| 02 कि.मी. विशाल शोभायात्रा के साथ ऐलाचार्य श्री का आयोजन स्थल पर आगमन हुआ जिसमें विभ्भिन समाजों के बैनर, 21 बड़े झण्डे, 11 घोड़े, 2 हाथी, 2 शहनाई, 2 ताशे, 4 बैण्ड, 1 नगाड़ा, 11 बग्गी, झांकियां, 160 इन्द्रानियाँ (केसरियाँ साड़ी में) मंगल कलश लेकर, माँ जिनवाणी रथ, चातुर्मास कलश रथ, चाँदी के विशाल अष्ट प्रातिहार्य तथा 64 चंवर सम्मिलित थे| इस समारोह में ऐलाचार्य श्री के साथ श्वेताम्बर संतों ने भी मंच की गरिमा बढ़ाई| चातुर्मास कलश स्थापना के पुनीत प्रसंग पर आयोजनकर्ता की ओर से लक्की ड्रा के माध्यम से सौभाग्यशाली महानुभावों को हवाई जहाज़ द्वारा श्री कचनेर जी, गजपंथा जी, मांगीतुंगी जी आदि तीर्थ क्षेत्रों की निःशुल्क धार्मिक यात्रा करवाई गई| ऐतिहासिक समारोह की सफल सम्पन्नता पर सकल त्रिनगर समाज में मिष्ठान वितरित किया गया|                 

गुरु पूर्णिमा एवं वीर शासन जयन्ती 
ऐलाचार्य श्री के सान्निध्य में गुरु पूर्णिमा एवं वीर शासन जयन्ती का आयोजन किया गया| इस अवसर पर ऐलाचार्य श्री ने गुरु की परिभाषा से सबको अवगत करवाया जिसे जानकर सभी प्रसन्नचित्त हो उठे| इस अवसर पर ऐलाचार्य श्री के पाद-प्रक्षालन, शास्त्र भेंट तथा नवधाभक्ति पूर्वक पूजन किया गया तथा गुरु के चरणों में भजनों के माध्यम से विनयांजलि अर्पित की गई| 

48 दिवसीय श्री भक्तामर पाठ तथा श्री भक्तामर महामण्डल विधान
ऐलाचार्य श्री की प्रेरणा एवं निर्देशन में 48 दिवसीय श्री भक्तामर पाठ का आयोजन प्रतिदिन सायं काल में धर्मशाला में किया गया| प्रतिदिन सैकड़ों की संख्या में धर्मानुरागी बंधुगण इस अनुष्ठान में सम्मिलित हुए तथा कर्मों की निर्जरा का प्रयास कर विशेष पुण्यार्जन किया| अनुष्ठान का भव्य समापन दिनांक 31 अगस्त को श्री 1008 भक्तामर महामण्डल विधान के साथ हुआ जिसमें 48 जोड़ों ने भाग लेकर धर्मार्जन किया|

55 दिवसीय श्री णमोकार महामंत्र जाप
ऐलाचार्य श्री की प्रेरणा से त्रिनगर एवं निकटवर्ती क्षेत्रों में 55 दिन तक दोपहर में लगातार श्री णमोकार महामंत्र का जाप घर-घर में सम्पन्न हुआ| इससे समस्त नगर में धर्म की विशेष लहर दौड़ गई तथा भारी धर्म-प्रभावना सम्पन्न हुई| प्रतिदिन सैकड़ों महिलाओं तथा पुरुषों ने इस जाप में सम्मिलित होकर इस अनुष्ठान को ऐतिहासिक रूप प्रदान किया| 

श्री पार्श्वनाथ निर्वाण कल्याणक दिवस
दिनांक 05 अगस्त को जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर श्री 1008 पार्श्वनाथ भगवान का निर्वाण कल्याणक दिवस आयोजित किया गया| भव्य निर्मित विशाल वेदी पर विराजमान श्री पार्श्वनाथ भगवान का अभिषेक, पूजन आदि के पश्चात् 23 किलों का सामूहिक निर्वाण लाडू चढ़ाया गया| इस समारोह में त्रिनगर जैन समाज ने बड़े उत्साह के साथ भाग लिया| ऐलाचार्य श्री ने आह्वान किया कि इस दिन पर सभी को शाश्वत सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेद शिखर जी की यात्रा कर उसके संरक्षण एवं संवर्धन में सहयोग करना चाहिए| 

श्वेताम्बर समाज के साथ विशेष आयोजन
ऐलाचार्य श्री की पावन उपस्थिति में एवं श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा. आदि ठाणा के सान्निध्य में आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. की 111वीं जन्म जयन्ती का भव्य आयोजन दिनांक 30 जुलाई को श्री जैन स्थानक भवन, त्रिनगर में किया गया तथा श्री प्रेमसुख जी म.सा. की 14वीं पुण्यतिथि के प्रसंग पर ऐलाचार्य श्री, श्री रविन्द्र मुनि जी, श्री उपेन्द्र मुनि जी, क्षुल्लक श्री विरंजन सागर जी आदि संतों के सान्निध्य में विशाल जाप्य महायज्ञ का आयोजन 07 अगस्त 2011 को शास्त्रीनगर में किया गया|

रक्षाबंधन पर्व
वात्सल्य दिवस श्री रक्षाबंधन पर्व का आयोजन दिनांक 13 अगस्त को हुआ| सभी गुरु-भक्तों ने साधुओं की रक्षा का संकल्प लेते हुए ऐलाचार्य श्री की पिच्छी पर रक्षासूत्र बांधा|  ऐलाचार्य श्री ने कहा कि आज का दिन वात्सल्य का प्रतीक है| साधर्मी की रक्षा सबसे बड़ा कर्त्तव्य है अतः हम सभी को इसे भली भाँती निभाना चाहिए| 15 अगस्त को ऐलाचार्य श्री ने शक्ति नगर में चातुर्मासरत मुनि श्री 108 पुण्य सागर जी महाराज से मंगल मिलन किया| 

पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व एवं क्षमावाणी पर्व 
दिनांक 02 से 11 सितम्बर 2011 तक आत्म विशुद्धि के प्रमुख पर्व - पर्वाधिराज श्री पर्युषण महापर्व का भव्य आयोजन ऐलाचार्य श्री के परम पावन सान्निध्य तथा प. श्री राज किंग जैन (अशोक नगर, म.प्र.) के विधानाचार्यत्व में किया गया| प्रतिदिन प्रातः काल में जिनाभिषेक, शान्ति-धारा एवं नित्य नियम पूजन के पश्चात् श्री तीर्थंकर चौबीसी विधान का भव्य आयोजन एवं ऐलाचार्य श्री द्वारा सारगर्भित प्रवचन श्रृंखला निरन्तर रूप से चलती रही| दोपहर में श्री णमोकार महामंत्र का जाप तथा ऐलाचार्य श्री द्वारा श्री तत्वार्थ सूत्र जी का स्वाध्याय करवाया गया| प्रतिदिन सायं काल में बैंड बाजों के साथ जैन परिवार अपने घर से मन्दिर जी आए तथा श्री जी की आरती उतारी| शास्त्र प्रवचन के पश्चात् भव्य एवं मनोरम सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए| अनन्त चौदश के दिन नौ परिवारों द्वारा विशाल महारती त्रिनगर के मुख्य चौराहे पर हजारों व्यक्तियों की उपस्तिथित में ऐतिहासिक रूप से सम्पन्न हुई| दिनांक 13 सितम्बर 2011 को क्षमावाणी महापर्व का भव्य आयोजन त्रिनगर में किया गया तथा सायं काल में श्री 1008 नेमिनाथ भगवान की भव्य बारात एवं वैराग्य दृश्य का विराट मंचन प्रथम बार त्रिनगर में हुआ| ऐलाचार्य श्री ने पर्युषण पर्व के दौरान समस्त नगर में आहारचर्या हेतु भ्रमण किया तथा जिस घर में अनुकूल वातावरण प्रतीत हुआ वहीँ रुक गए| ऐलाचार्य श्री ने कहा कि जिस चौंके में चार या पाँच से अधिक पदार्थ तैयार किए जाएंगे, वह वहाँ से विहार कर किसी दूसरे चौंके की ओर बढ़ जाएंगे| ऐलाचार्य श्री की इस पहल से समस्त समाज में नव-चेतना का संचार हुआ तथा सभी ने सहर्ष इस संकल्प की अनुमोदना की|

श्री तीनलोक महामण्डल विधान एवं विश्वशान्ति महायज्ञ
ऐलाचार्य श्री की पावन प्रेरणा, निर्देशन एवं सान्निध्य में दिनांक 26 सितम्बर से 05 अक्टूबर तक श्री 1008 तीनलोक महामण्डल विधान एवं विश्वशान्ति महायज्ञ का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ| विधान हेतु जैन धर्मशाला को विशेष रूप से सजाया गया तथा विशाल मांडला एवं तीनलोक का भव्य मॉडल तैयार किया गया जो अत्यन्त मनमोहक एवं दर्शनीय था| प्रतिदिन सायं कालीन भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी सम्पन्न हुए| इस विधान में सम्मिलित होने वाले समस्त धर्मानुरागी बन्धुओं को सिद्धक्षेत्र श्री सोनागिर जी की दो दिवसीय निःशुल्क धार्मिक यात्रा करवाई गई|

जन्म जयन्ती एवं ऐलाचार्य पद प्रतिष्ठापन जयन्ती
दिनांक 23 सितम्बर को ऐलाचार्य श्री की 46वीं जन्म जयन्ती तथा 4 अक्टूबर को द्वितीय ऐलाचार्य पद प्रतिष्ठापन जयन्ती के पुनीत अवसर पर समस्त समाज ने ऐलाचार्य श्री के चरणों में अपनी विनयांजलि अर्पित की| शास्त्री नगर से पधारे क्षुल्लक श्री 105 विरंजन सागर जी महाराज ने ऐलाचार्य श्री को जन्म जयन्ती की शुभकामनाएं प्रेषित की तथा अपनी विनयांजलि अर्पित की| युवा भक्तों ने धर्मशाला में विशेष भजन संध्या का आयोजन किया जिसमें हजारों व्यक्तियों ने सम्मिलित होकर ऐलाचार्य श्री का आशीर्वाद प्राप्त किया| उल्लेखनीय है कि ऐलाचार्य श्री ने महावीर जयन्ती 2010 के अवसर पर जीवन-पर्यंत अपने जन्म जयन्ती तथा दीक्षा जयन्ती का आयोजन ना करने का संकल्प लिया था|

महामंगल प्रार्थना सभा 
श्रमण संघीय उपाध्याय रत्न श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा. की 34वीं दीक्षा जयन्ती के पुनीत उपलक्ष्य पर महामंगल प्रार्थना सभा का भव्य आयोजन दिनांक 09 अक्टूबर को शंकर चौक, त्रिनगर में किया गया| इस समारोह में ऐलाचार्य श्री के साथ श्री उपेन्द्र मुनि जी म.सा., श्रमण संघीय मंत्री श्री शिरीष मुनि जी म.सा. आदि श्वेताम्बर संतों का मंगल मिलन हुआ|

पर्यावरण बचाओ "विशाल अहिंसा रैली"
ऐलाचार्य श्री की प्रेरणा एवं निर्देशन में इतिहास में प्रथम बार विशाल अहिंसा रैली का विराट आयोजन दिनांक 16 अक्टूबर को त्रिनगर में किया गया| दीपावली पर्व के अवसर पर पटाखों से होने वाली हिंसा तथा पर्यावरण को नुकसान के प्रति जागरूकता जागृत करने के अभियान हेतु इस रैली का आयोजन किया गया| रैली में ऐलाचार्य श्री के साथ उपाध्याय श्री रविन्द्र मुनि जी म.सा., क्षुल्लक श्री विरंजन सागर जी महाराज तथा अन्य धर्म के गुरुजन का सान्निध्य भी प्राप्त हुआ| विराट रैली में दिल्ली एवं निकटवर्ती क्षेत्रों से स्कूली बच्चे, विभ्भिन संस्थाओं के पदाधिकारीगण, समाज के वरिष्ट व्यक्ति, महिलाएं, बच्चे तथा अनेक गणमान्य महानुभाव सम्मिलित हुए| मंचासीन पूजनीय गुरुजनों ने भी अपनी अमृतमयी वाणी से सभी को भगवान महावीर के सन्देश से अवगत करवाया तथा सभी से पटाखे न जलाने का आह्वान किया|

शिखर जीर्णोद्धार, स्वर्ण कलशारोहण एवं ध्वजारोहण
ऐलाचार्य श्री के निर्देशन में श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, त्रिनगर में श्री 1008 नेमिनाथ भगवान के शिखर का जीर्णोद्धार कार्य दिनांक 17 अक्टूबर को विशेष पूजन तथा मंत्रोच्चार के साथ प्रारम्भ हुआ| शिखर के कलश का शुद्धिकरण तथा स्वर्ण कार्य सम्पन्न कर भव्य शिखर स्वर्ण कलशारोहण एवं ध्वजारोहण दिनांक 17 नवम्बर को किया गया|

भगवान  महावीर निर्वाण कल्याणक दिवस
दीपावली के पुनीत प्रसंग पर भगवान महावीर की निर्वाण स्थली सिद्धक्षेत्र श्री पावापुरी जल मन्दिर की भव्य कृत्रिम रचना जैन धर्मशाला में की गई| विशेष पूजन-विधान के साथ ऐलाचार्य श्री के सान्निध्य में भगवान महावीर निर्वाण लाडू हजारों धर्मानुरागी बन्धुओं द्वारा चढ़ाया गया| त्रिनगर जैन समाज के इतिहास में प्रथम बार इतना भारी जनसैलाब इस अवसर पर सम्मिलित हुआ| ऐलाचार्य श्री के कर-कमलों द्वारा सभी आगंतुक महानुभावों को विशेष अभिमंत्रित रतन प्रदान किए गए| धनतेरस पर ऐलाचार्य श्री ने मंत्रित चाँदी के सिक्के भी प्रदान किए| खेकड़ा (जिला बागपत, उ.प्र.) में चातुर्मास सम्पन्न कर क्षुल्लक श्री 105 योग भूषण जी महाराज ने त्रिनगर पधारकर ऐलाचार्य श्री के दर्शन किए| 

श्री सिद्धचक्र महामण्डल विधान एवं विश्व शान्ति महायज्ञ
श्री प्रमोद जैन 'राखी वाले' के सौजन्य से अष्टाह्निका महापर्व के पुनीत अवसर पर श्री 1008 सिद्धचक्र महामण्डल विधान एवं विश्वशान्ति महायज्ञ का भव्य आयोजन दिनांक 03 से 11 नवम्बर तक किया गया| इस आयोजन को भव्य रूप प्रदान करने के लिए विशेष रूप से जोरदार व्यवस्थाएं की गईं तथा अनुष्ठान हेतु अत्यन्त मनोरम एवं विशाल मांडला बनाया गया| प्रतिदिन भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम सम्पन्न हुए तथा विधान में सम्मिलित होने वाले सभी व्यक्तियों को अतिशय क्षेत्र श्री बड़ागांव एवं श्री जलालाबाद की निःशुल्क धार्मिक यात्रा करवाई गई| दिनांक 11 नवम्बर को ऐलाचार्य श्री का केशलोंच सम्पन्न हुआ| चातुर्मास के मंगल कलशों की सबसे अधिक जाप करने वाले 11 महानुभावों को विशेष आकर्षक उपहार प्रदान कर सम्मानित किया गया|  

भव्य षष्टम चातुर्मास कलश निष्ठापन समारोह
ऐलाचार्य श्री के वर्ष 2011 के त्रिनगर में अनूठा, अद्वितीय अभूतपूर्व एवं भव्य षष्टम चातुर्मास के समाप्ति के पल भी नज़दीक आ गए| लगभग तीन हजार धर्मानुरागी महानुभावों की उपस्तिथि में षष्टम चातुर्मास निष्ठापन समारोह का विराट एवं ऐतिहासिक आयोजन रविवार, दिनांक 13 नवम्बर 2011 को प्रातः 9.00 बजे से वी.वी.आई.पी. पार्क, केशव पुरम में किया गया| विशाल शोभायात्रा के रूप में ऐलाचार्य श्री जैन धर्मशाला से विहार कर आयोजन स्थल पर पहुंचे| इस अवसर पर चातुर्मास में विराजमान मुख्य कलश तथा 107 सम्यक तप कलश का वितरण सौभाग्यशाली महानुभावों को कूपन के माध्यम से किया गया| ऐलाचार्य श्री की अष्ट द्रव्य से पूजन, शास्त्र भेंट, पिच्छी-कमंडल परिवर्तन आदि कार्यक्रम भी सम्पन्न हुए| समारोह में उपस्थित धर्मानुरागी बन्धुओं में से लक्की ड्रा के माध्यम से 11 व्यक्तियों को ऐलाचार्य श्री के स्वर्ण चित्र प्राप्त करने का सुअवसर प्राप्त हुआ| 

भव्य विदाई समारोह 
ऐतिहासिक एवं अविस्मरणीय चातुर्मास सम्पन्न कर ऐलाचार्य श्री का विदाई समारोह दिनांक 20 नवम्बर 2011 को श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला, त्रिनगर में आयोजित किया गया| विदाई के यह पल निश्चित रूप से अत्यन्त वेदनीय थे परन्तु इसका कोई उपाय भी नहीं है क्योंकि जैन मुनि का विहार नदी के पानी की तरह निरन्तर गतिमान रहता है| समाज के वरिष्टजनों ने तथा कार्यकारिणी कमिटी के सभी सदस्यों ने चातुर्मास के माध्यम से हुई धर्म प्रभावना की भूरी-भूरी प्रशंसा की तथा इस महायोजन को सफल बनाने हेतु सभी के योगदान के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया| ऐलाचार्य श्री ने कहा कि चातुर्मास द्वारा जली ज्ञान की ज्योत को निरन्तर जलाए रखना होगा तथा कमिटी को प्रेरित किया कि नगर में समय-समय पर सभी साधु-संतों का समागम होता रहे| विदाई समारोह के पश्चात् ऐलाचार्य श्री ने त्रिनगर से केशव पुरम के लिए मंगल विहार किया| 
भविष्य में नहीं मनाएंगे अपने जन्म-दीक्षा जयन्ती
त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज के परम विद्वान शिष्य युवा प्रणेता ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज के परम पावन सान्निध्य में भारत की अत्यन्त प्राचीन श्री महावीर जयन्ती महामहोत्सव का तीन दिवसीय कार्यक्रम 26 से 28 मार्च तक प्रथम बार भव्यता के साथ जैन मित्र मण्डल, धर्मपुरा के तत्वावधान में ऋषभदेव पार्क (परेड ग्राउंड), लालकिले के सामने, दिल्ली में सम्पन्न हुआ| प्रतिदिन पूज्य ऐलाचार्य श्री द्वारा सारगर्भित प्रवचन से भारी संख्या में उपस्थित जनसमुदाय लाभान्वित हुआ| विद्वानों द्वारा शास्त्र सभा एवं विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन संध्याकाल में किया गया|
महावीर जयन्ती के पावन पर्व पर दिनांक 28 मार्च को प्रातः काल विशेष धर्मसभा का आयोजन किया गया| जैन मित्र मण्डल द्वारा पूज्य ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी मुनिराज का पंचम मुनि दीक्षा दिवस भी इसी मंच पर आयोजित किया गया| कार्यक्रम का शुभारम्भ मंगलाचरण से हुआ| समाज के श्रेष्टिजन द्वारा महावीर स्वामी के जीवन पर प्रकाश डाला गया एवं विशेष उदबोधन प्रस्तुत किए गए| दीक्षा जयन्ती के उपलक्ष्य में पूज्य ऐलाचार्य श्री के पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट, पिच्छी परिवर्तन, महारती आदि कार्यक्रम भव्यता से सम्पन्न हुए| पूज्य ऐलाचार्य श्री के मार्बल एवं तैल चित्रों का अनावरण सभा के मध्यस्त किया गया| दिल्ली जैन समाज के प्रमुख अखबार जनभावना सन्देश, सांध्य महालक्ष्मी, टाइम्स भारती, सिंह की आवाज़ आदि द्वारा प्रकाशित महावीर जयन्ती विशेषांक का विमोचन हुआ| सांध्य महालक्ष्मी द्वारा प्रकाशित ‘महावीर जयन्ती संग्रह पुष्प’ का अनावरण भी विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया|

विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए पूज्य ऐलाचार्य श्री ने महावीर स्वामी के जीवन आदर्शों से प्रेरणा लेने को कहा| पूज्य ऐलाचार्य श्री ने कहा कि महावीर स्वामी का यह जन्म अन्तिम जन्म था और अन्तिम जन्म के पश्चात् मृत्यु नहीं होती अथवा निर्वाण प्राप्त होता है| महावीर स्वामी ने कल्याणक प्राप्त किया इसलिए हमें महावीर स्वामी की जन्म जयन्ती के बजाय जन्म कल्याणक दिवस का आयोजन करना चाहिए| जन्म जयन्ती तो महापुरुषों की मनाई जाती है परन्तु तीर्थंकर भगवान के कल्याणक मनाए जाते है| महावीर जन्म कल्याणक दिवस एवं पंचम दीक्षा जयन्ती के संयुक्त आयोजन पर पूज्य ऐलाचार्य श्री ने कहा कि वर्तमान में साधु वर्ग अपनी जन्म एवं दीक्षा जयन्ती का आयोजन अग्र रूप से करवा रहे है| इसका परिणाम यह होगा कि भविष्य में समाज तीर्थंकर भगवान के कल्याणक दिवस को भूल बैठेंगे तथा मुनिराजों के जन्म एवं दीक्षा दिवस ही आयोजित करेंगे| समाज को इस दिग्भ्रमण से बचाने के लिए पूज्य ऐलाचार्य श्री ने एक नई पहल करी| पूज्य ऐलाचार्य श्री ने मंच से यह घोषणा करी कि अपने जीवनकाल में कभी भी अपनी दीक्षा एवं जन्म जयन्ती नहीं आयोजित करवाएंगे| साधु वर्ग में इस नई शुरुवात का सर्वसमाज ने हर्ष-विभोर हो स्वागत किया एवं करतल ध्वनि से अनुमोदना की| इस भव्य समारोह में राजधानी दिल्ली एवं निकटवर्ती क्षेत्रों से भारी संख्या में श्रद्धालुजन उपस्थित हुए|

ऐलाचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए मुनि श्री अतिवीर जी महाराज
ऐलाचार्य पद प्रतिष्ठापन आयोजन समिति के तत्वाधान में परम पूज्य आचार्य श्री 108 सुमति सागर जी महाराज की जन्म-जयन्ती के पुनीत अवसर पर उनके पट्ट शिष्य त्रिलोक तीर्थ प्रणेता परम पूज्य आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज द्वारा अपने परम प्रभावी शिष्य राष्ट्र संत परम पूज्य मुनि श्री 108 अतिवीर जी महाराज को विधि-विधान पूर्वक सभी मांगलिक क्रियाएं संपन्न कर ‘ऐलाचार्य पद’ पर दिनांक 4 अक्टूबर, 2009 को सी.बी.डी. ग्राउंड, ऋषभ विहार में विशाल धर्म सभा के समक्ष प्रतिष्ठित किया गया| 
समारोह का शुभारम्भ भव्य शोभायात्रा से हुआ| शोभायात्रा प्रातः 9:00 बजे श्री दिगम्बर जैन मन्दिर, ऋषभ विहार से प्रारम्भ हुई जो विभ्भिन मुख्य मार्गों से होते हुए सी.बी.डी. ग्राउंड में निर्मित भव्य पण्डाल में पहुंची| समस्त मार्ग पर शोभायात्रा का भव्य स्वागत किया गया एवं पूज्य आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज (ससंघ) की मंगल आरती की गई| ऋषभ विहार में चातुर्मास-रत् श्वेताम्बर जैनाचार्य श्री शिव मुनि जी महाराज (ससंघ) ने पूज्य आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज की मंगल अगवानी की एवं कुछ दूर तक साथ विहार किया| आचार्य-द्वय के मिलन का दृश्य अत्यंत मनोहारी था एवं जय-घोषो से सम्पूर्ण वातावरण गुंजायमान हो गया| 
भव्य पण्डाल में समस्त समाज द्वारा पूज्य आचार्य श्री (ससंघ) का जोर-शोर से स्वागत किया गया| धर्म-सभा का शुभारम्भ पवन शर्मा ग्रुप द्वारा 21 वाद्य-यंत्रो से मंगलाचरण के साथ हुआ| श्री विद्यासागर जैन (बैंक एन्क्लेव) द्वारा ध्वजारोहण किया गया एवं श्री सुखपाल सिंह प्रवीण कुमार जैन (एस. पी. इंडस्ट्रीज, सूरत), कैलाश नगर वालो द्वारा जिनेन्द्र भगवंत तथा गुरुवर आचार्य श्री सुमति सागर जी महाराज के चित्र का अनावरण किया गया| श्री विजय जैन ‘बल्लन’ (गाँधी नगर) द्वारा श्री जिनवाणी माँ को विराजमान किया गया| श्री सुभाष चंद जैन (भगत जी), कैलाश नगर द्वारा द्वीप प्रज्ज्वलन किया गया| समिति के अध्यक्ष श्री स्वदेश भूषण जैन (पंजाब केसरी), अशोक विहार द्वारा कार्यक्रम का सञ्चालन किया गया|

अति-विशिष्ट अतिथिगण श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन महासभा के अध्यक्ष श्री निर्मल कुमार सेठी, दिल्ली जैन समाज के अध्यक्ष एवं श्री तीर्थ क्षेत्र कमिटी के महामंत्री श्री चक्रेश जैन, त्रिलोक तीर्थ (बडागांव) के अध्यक्ष श्री गजराज जी गंगवाल एवं श्री प्रमोद जैन ‘बिजली वाले’ (मै. महावीरा ट्रेडिंग कंपनी) भी विशेष रूप से उपस्थित हुए|

भव्य समारोह में आचार्य श्री 108 विद्याभूषण सन्मति सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 अतिवीर जी महाराज, मुनि श्री 108 तत्त्व भूषण जी महाराज, मुनि श्री 108 स्वर भूषण जी महाराज के साथ साथ कैलाश नगर से पधारे मुनि श्री 108 वैराग्य सागर जी महाराज, विश्वास नगर से पधारे ऐलक श्री 105 विज्ञान सागर जी महाराज, विवेक विहार से आर्यिका श्री 105 सरस्वती भूषण माता जी, उस्मानपुर से आर्यिका श्री 105 दृष्टि भूषण माता जी, राम नगर से आर्यिका श्री 105 स्वस्ति भूषण माता जी का परम सान्निध्य भी प्राप्त हुआ| श्वेताम्बर जैनाचार्य श्री शिव मुनि जी महाराज के संघस्थ शिष्य श्री शिरीष मुनि जी महाराज आदि एवं अन्य साधु-वृन्द भी विशेष रूप से सम्मिलित हुए|

पूज्य आचार्य श्री ने अपनी मंगलमयी आशीष वर्षा से हजारों भक्तो को सरो-बार करवाया| आचार्य श्री ने कहा कि जीवन का लक्ष्य शरीर और आत्मा के भेद विज्ञान को प्राप्त करना है| इसी से आत्मा परमात्मा बनेगी| जैन दर्शन भेद विज्ञान का दर्शन है और ऐलाचार्य दीक्षा आगम व मूलाचार के अनुकूल है| पूज्य मुनि श्री अतिवीर जी महाराज ने कहा कि जब तक जीवन गुरु से नहीं जुड़ता, तब तक पूर्णता नहीं मिलती| उन्हें भी आचार्य श्री का वात्सल्य और मार्गदर्शन मिला है|

इस पुनीत अवसर पर शिष्य का अपने गुरु के प्रति समर्पण तथा गुरु का अपने शिष्य के प्रति अनुराग का दृश्य विहंगम था| मुनि श्री अतिवीर जी महाराज अपने गुरुवर आचार्य श्री सन्मति सागर जी महाराज के चरणों में भाव-विभोर हो उठे तथा उनके चक्षुओं से अश्रु-धारा बह पड़ी| पूज्य आचार्य श्री भी अपने को संभाल न पाए एवं उनकी आँखों से भी अपने शिष्य के प्रति ख़ुशी के आंसू छलक उठे| यह दृश्य अत्यंत मनोहारी था तथा समस्त भक्तगणों के लिए भावाविभोर कर देना वाला था| कार्यक्रम के मध्य दिल्ली के लोकप्रिय दैनिक ‘सांध्य महालक्ष्मी’ द्वारा विशेष परिशष्ट का विमोचन हुआ| 1 नवम्बर, 2009 को पूज्य आचार्य श्री के 60 वी जन्म-जयन्ती के कार्यक्रम के प्रचार-प्रसार सामग्री का विमोचन भी विशिष्ट अतिथियों द्वारा किया गया|

इसके पश्चात् पूज्य आचार्य श्री ने विराजमान समस्त साधु संघ तथा उपस्थित सभी श्रद्धालुओं की अनुमति से मुनि श्री अतिवीर जी महाराज का ‘ऐलाचार्य पद’ के संस्कार का शुभारम्भ किया| संस्कार के लिए निर्मित ठोस चबूतरे पर पूज्य आचार्य श्री एवं मुनि श्री विराजमान हुए तथा विशाल जन-समुदाय के समक्ष ‘ऐलाचार्य पद’ के संस्कार प्रारम्भ हुए| संस्कारों के पश्चात् नव प्रतिष्ठित ऐलाचार्य श्री 108 अतिवीर जी महाराज को नवीन अहिंसा उपकरण मयूर पिच्छिका एवं शौच उपकरण कमण्डलु प्रदान किए गए| श्री अनुज कुमार दीपक कुमार जैन (गली गुलियान, चांदनी चौक) द्वारा ऐलाचार्य श्री को शास्त्र भेंट किए गयें| पूज्य आचार्य श्री द्वारा ऐलाचार्य श्री की पुरानी पिच्छी श्री संजय कुमार जैन (रेवाडी वाले), ग्रीन पार्क को प्रदान की गई| मंच पर विराजमान समस्त साधु-वृन्द की मंगल आरती विशेष रूप से सजाये गए दीपकों द्वारा की गई|

इस प्रकार यह समारोह अत्यंत आनन्द पूर्वक भव्यता से संपन्न हुआ| इस समारोह में दिल्ली से सभी कालोनियों के अतिरिक्त बडौत, शामली, मेरठ, गाजियाबाद, पानीपत, गुडगाँव, रेवाडी, मुम्बई, इन्दौर, नीमच आदि विभ्भिन स्थानों से लगभग पन्द्रह हजार धर्मानुरागी बंधुओं ने सम्मिलित होकर विशेष पुण्यार्जन किया| भव्य कार्यक्रम के पश्चात् समस्त आगंतुक बंधुओं के लिए स्वरूची भोज की व्यवस्था की गई थी जिसका सभी ने खूब आनन्द लिया| यह कार्यक्रम जैन इतिहास में एक अनूठा कार्यक्रम था तथा एक ऐतिहासिक रूप लेकर सानन्द संपन्न हुआ|