प्रवचनांश

आचार्य श्री के प्रवचन से संकलित कुछ संक्षिप्त सूत्र
  • समता भाव को पालना और कर्मो को छोड़ना सीखो - भगवान महावीर
  • वीतराग भगवान के अलावा किसी भी भगवान को नमन करने से मिथ्यात्व कर्म का महा पाप लगता है|
  • क्षमा जब तक अन्तरंग में नहीं उतरेगी तब तक वह निरर्थक है|
  • जिनवाणी सभी श्रावकों पर जीवन भर उपकार करती है| जिनवाणी को आचरण में उतारकर उसके उपकार को चुकाना चाहिए|
  • सत्य को शब्दों में नहीं बताया जा सकता| सत्य तो केवल अनुभव में लाया जा सकता है|
  • सत्संग कभी भी किसी को डुबाता नहीं, किन्तु डूबते हुए को भी पार लगा देते हैं|
  • 9 ‘अ’ को हमेशा ध्यान रखें - अहिंसा, अणुव्रत, अपरिग्रह, आस्था, आत्मा, आध्यात्मिकता, अनेकान्त, आर्जव, आदर|
  • जैन धर्म अनेकान्तमय, स्याद्वादमय, उदार और सहिष्णु है|
  • अरिहंत की बोली, सिद्धों का सार, आचार्यों का पाठ, साधु के साथ, अहिंसा का प्रचार, जिन की यही पुकार
  • श्रावक के 6 आवश्यक कर्म - देव पूजा, गुरु भक्ति, स्वाध्याय, संयम, तप एवं दान
  • वह मनुष्य धन्य है जिसके बच्चों का आचरण निष्कलंक है। सात जन्म तक उसे कोई बुराई नहीं छू सकती।
  • धरती उन लोगों को भी आश्रय देती है जो उसे खोदते हैं। इसी तरह तुम भी उन लोगों की बातें सहन करो जो तुम्हें सताते हैं क्योंकि बड़प्पन इसी मैं है।
  • जीवन को भोगों से छुड़ाकर योगों में ले जाने की प्रक्रिया का नाम दीक्षा है।
  • जो गृहस्थ दूसरे लोगों को कर्तव्य पालन में सहायता देता है और स्वयं भी धार्मिक जीवन व्यतीत करता है, वह ऋषियों से अधिक पवित्र है।
  • सम्यक्त्वरुपी रत्न से बढकर दूसरा रत्न नहीं है, सम्यक्त्व रुपी मित्र से बढकर दूसरा मित्र नहीं है, सम्यक्त्व रुपी भाई से बढकर दूसरा भाई नहीं है और सम्यक्त्व से बढकर दूसरा लाभ नहीं है।
  • जो बार बार आवे वह मौत है और जो एक बार आवे वह मोक्ष है।
  • श्रद्धा से रहित की गई परमात्मा की भक्ति से कर्मो के बंधन से मुक्ति नही मिलती है।
  • गुरु समाज को सीचते है बनाते है। जिसके घर में या मकान में गुरु के चरण जाते है तो वह स्थान तीर्थ कहा जाता है।